अपनी इंसानियत को बेज़ार नही कर सकता
मैं हंस कर किसी पे वार नही कर सकता
मुमकिन है की तुम वापस लौट आओ
पर इस मोड़ पे तुम्हारा और इंतजार नही कर सकता
पनप रही है एक दास्तान मेरे भीतर मगर
लाचारी ये है की इकरार नही कर सकता
कुछ मत मांगना इस वक्त मुझसे तुम
इस वक्त मैं इनकार नहीं कर सकता
अभी हवस भरी है बस नफस नफस में मेरे
मैं किसी से भी प्यार नही कर सकता
और कर भी लिया इश्क अगर तन्हाइयों के दबाव में
तो फिर बेशुमार नही कर सकता
अब तक की ज़िंदगी में इतने धोखे खाए हैं ' मुख्तलिफ '
की चाह कर भी किसी पे ऐतबार नही कर सकता
©Aditya Mishra 'mukhtalif'
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