ब्याह तो कर दिया है,लोक रंजन से गढ़ दिया है। रीति- | हिंदी Poetry

"ब्याह तो कर दिया है,लोक रंजन से गढ़ दिया है। रीति-रिवाज को निभा कर,सुंदर सजीला वर दिया है। देख ताक कर सब तुमने,जो आकलन किया है। विचार तुम्हारे मानकर,मैंने भी वो वर, वर लिया है। तुमने हस्ती के स्वरूप,परिपूर्ण एक घर दिया है। सुंदर सजीला वर दिया है...... काश जो मन को भी पढ़ ले,ऐसी कोई तकनीक होती। काश ये बिटिया भी तेरी,इतनी भी ना शालीन होती। गाँव से बढ़कर के मुझको तुमने इक शहर दिया है। सुंदर सजीला वर दिया है....... कुछ सवालों के परिंदे,मुझसे ये अक्सर पूछते हैं। इन दिनों ये होंठ तेरे,क्यों सिले से बूझते हैं। इक नयनतारा को तुमने,कैसे अकेला कर दिया है? सुंदर सजीला वर दिया है....... सब दूर अब जाने लगे हैं,ख़्वाब भी तर्पण हुआ है। सारे विधि-विधानों में,मन मेरा अर्पण हुआ है। स्वप्न नयन में शोभते थे,आँसुओं से भर दिया है। सुंदर सजीला वर दिया है....... पढ़ना, लिखना,पाक कला,सबकुछ तो सिखलाया था। पल-पल में सम्मान घटेगा,यह क्यूँ ना बतलाया था? क्या माँ को भी तुमने कभी,ये कड़वा ज़हर दिया है? सुंदर सजीला वर दिया है........ ©शिल्पी शहडोली"

 ब्याह तो कर दिया है,लोक रंजन से गढ़ दिया है।
रीति-रिवाज को निभा कर,सुंदर सजीला वर दिया है।

देख ताक कर सब तुमने,जो आकलन किया है।
विचार तुम्हारे मानकर,मैंने भी वो वर, वर लिया है।
तुमने हस्ती के स्वरूप,परिपूर्ण एक घर दिया है।
सुंदर सजीला वर दिया है......

काश जो मन को भी पढ़ ले,ऐसी कोई तकनीक होती।
काश ये बिटिया भी तेरी,इतनी भी ना शालीन होती।
गाँव से बढ़कर के मुझको तुमने इक शहर दिया है।
सुंदर सजीला वर दिया है.......

कुछ सवालों के परिंदे,मुझसे ये अक्सर पूछते हैं।
इन दिनों ये होंठ तेरे,क्यों सिले से बूझते हैं।
इक नयनतारा को तुमने,कैसे अकेला कर दिया है?
सुंदर सजीला वर दिया है.......

सब दूर अब जाने लगे हैं,ख़्वाब भी तर्पण हुआ है।
सारे विधि-विधानों में,मन मेरा अर्पण हुआ है।
स्वप्न नयन में शोभते थे,आँसुओं से भर दिया है।
सुंदर सजीला वर दिया है.......

पढ़ना, लिखना,पाक कला,सबकुछ तो सिखलाया था।
पल-पल में सम्मान घटेगा,यह क्यूँ ना बतलाया था?
क्या माँ को भी तुमने कभी,ये कड़वा ज़हर दिया है?
सुंदर सजीला वर दिया है........

©शिल्पी शहडोली

ब्याह तो कर दिया है,लोक रंजन से गढ़ दिया है। रीति-रिवाज को निभा कर,सुंदर सजीला वर दिया है। देख ताक कर सब तुमने,जो आकलन किया है। विचार तुम्हारे मानकर,मैंने भी वो वर, वर लिया है। तुमने हस्ती के स्वरूप,परिपूर्ण एक घर दिया है। सुंदर सजीला वर दिया है...... काश जो मन को भी पढ़ ले,ऐसी कोई तकनीक होती। काश ये बिटिया भी तेरी,इतनी भी ना शालीन होती। गाँव से बढ़कर के मुझको तुमने इक शहर दिया है। सुंदर सजीला वर दिया है....... कुछ सवालों के परिंदे,मुझसे ये अक्सर पूछते हैं। इन दिनों ये होंठ तेरे,क्यों सिले से बूझते हैं। इक नयनतारा को तुमने,कैसे अकेला कर दिया है? सुंदर सजीला वर दिया है....... सब दूर अब जाने लगे हैं,ख़्वाब भी तर्पण हुआ है। सारे विधि-विधानों में,मन मेरा अर्पण हुआ है। स्वप्न नयन में शोभते थे,आँसुओं से भर दिया है। सुंदर सजीला वर दिया है....... पढ़ना, लिखना,पाक कला,सबकुछ तो सिखलाया था। पल-पल में सम्मान घटेगा,यह क्यूँ ना बतलाया था? क्या माँ को भी तुमने कभी,ये कड़वा ज़हर दिया है? सुंदर सजीला वर दिया है........ ©शिल्पी शहडोली

#Parchhai #vivaah #स्त्री

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