Shilpi Singh

Shilpi Singh Lives in Shahdol, Madhya Pradesh, India

कोई पहचान नही है मेरी अबतक, खुद मे रहना खुद मे जीना, बस इतनी सी है मेरी फितरत!! दुनिया में पहला कदम 🎂30/05/1997🎂

  • Latest
  • Popular
  • Repost
  • Video

प्रेम लगन कुछ ऐसी लगी सुध आपन ही बिसरा गई मीरा। दर्पण में जब देखी छवि तो छवि कान्हा की बता गई मीरा। जोग लगी कुछ ऐसी सखी कि जोग में भोग भुला गई मीरा। प्रेम की ज्योति जलाए हिय विष को ही अम्ब्र बना गई मीरा। ©Shilpi Singh

#Krishna #Quotes #bhajan #Radha  प्रेम लगन कुछ ऐसी लगी सुध आपन ही बिसरा गई मीरा।
दर्पण में जब देखी छवि तो छवि कान्हा की बता गई मीरा।
जोग लगी कुछ ऐसी सखी कि जोग में भोग भुला गई मीरा।
प्रेम की ज्योति जलाए हिय विष को ही अम्ब्र बना गई मीरा।

©Shilpi Singh

हे ज्ञान दायिनी ! विद्यादायिनी! हे शारद ! मातु भवानी! इतना मुझको वर दे माता,सदा देश हित बात करूँ। जब भी चले लेखनी मेरी, कभी ना पक्षपात करूँ।। सुगम,सरल और सबल रहूँ, निश्चित स्वयं में अटल रहूँ। द्वेष कहीं ना कोई पले,माँ भारती का जयनाद करुँ।। ©Shilpi Singh

 हे ज्ञान दायिनी ! विद्यादायिनी!
हे शारद ! मातु भवानी!
इतना मुझको वर दे माता,सदा देश हित बात करूँ।
जब भी चले लेखनी मेरी, कभी ना पक्षपात करूँ।।
सुगम,सरल और सबल रहूँ, निश्चित स्वयं में अटल रहूँ।
द्वेष कहीं ना कोई पले,माँ भारती का जयनाद करुँ।।

©Shilpi Singh

basant panchmi

19 Love

ये मन भी ना बड़ा अजीब है ना ना चंचल नहीं कहूंगी क्योंकि इसका स्वभाव बिल्कुल सब्ज़ी में पड़ने वाले नमक की तरह होता है। स्वादानुसार!! बिल्कुल! मन को जीवन का जैसा स्वाद आता है उसकी स्थिति वही होती है। वैसे तो हंस बोल लेता ही है और कभी जाने किस यात्रा में निकल जाता है? जहां बाहर शांति पर अंदर बहुत कोलाहल सा मचा होता है और वो यात्रा,वो सुसुप्त अवस्था कुछ पल को अथाह सुकून देते हैं फिर मन को लगता है कि बस ऐसे ही ठहर जाता यही इसी अवस्था में.... इसी अनंत यात्रा में। सारा स्वाद जीवन लेता है पर पीड़ा नामक सागर की लहरें इसी मन में उठती हैं। वो अथाह पीड़ा जाने कहां से आती है?? देखो न मन करता है बहुत कुछ लिख डालूं पर शब्द नही जोड़ पा रही। ये मन ही तो है जिसने शायद दिमाग भी काबू में कर लिया है ©Shilpi Singh

#andhere  ये मन भी ना बड़ा अजीब है
ना ना चंचल नहीं कहूंगी
क्योंकि इसका स्वभाव बिल्कुल
सब्ज़ी में पड़ने वाले नमक की 
तरह होता है।
स्वादानुसार!!
बिल्कुल! मन को जीवन का जैसा
स्वाद आता है उसकी स्थिति वही होती है।
वैसे तो हंस बोल लेता ही है
और कभी जाने
किस यात्रा में निकल जाता है?
जहां बाहर शांति पर अंदर
बहुत कोलाहल सा मचा होता है
और वो यात्रा,वो सुसुप्त अवस्था
कुछ पल को अथाह सुकून देते हैं
फिर मन को लगता है कि बस 
ऐसे ही ठहर जाता यही 
इसी अवस्था में....
इसी अनंत यात्रा में।
सारा स्वाद जीवन लेता है
पर पीड़ा नामक सागर की लहरें
इसी मन में उठती हैं।
वो अथाह पीड़ा जाने 
कहां से आती है??
देखो न मन करता है
बहुत कुछ लिख डालूं
पर शब्द नही जोड़ पा रही।
ये मन ही तो है जिसने 
शायद दिमाग भी काबू में कर लिया है

©Shilpi Singh

#andhere

17 Love

#krishna_flute #radhe_govind #Krishnalove #shilpisingh #Quotes  *सवैया*

साँवर साँवर रूप अनूप,धरे सिर मोरपखा छवि छाए।
पायन पैजनिया छनकै, लटकैं अलकैं सखि नीक सुहाए।
धूरि लगाय चलैं हँसि के,मनमोहनि मूरति चित्त चुराए।
काह कहौं छवि माधुरि को,हिय मे बसि के बहुतै तड़पाए।।

©Shilpi Singh
#uskajaana

#uskajaana

1,598 View

ब्याह तो कर दिया है,लोक रंजन से गढ़ दिया है। रीति-रिवाज को निभा कर,सुंदर सजीला वर दिया है। देख ताक कर सब तुमने,जो आकलन किया है। विचार तुम्हारे मानकर,मैंने भी वो वर, वर लिया है। तुमने हस्ती के स्वरूप,परिपूर्ण एक घर दिया है। सुंदर सजीला वर दिया है...... काश जो मन को भी पढ़ ले,ऐसी कोई तकनीक होती। काश ये बिटिया भी तेरी,इतनी भी ना शालीन होती। गाँव से बढ़कर के मुझको तुमने इक शहर दिया है। सुंदर सजीला वर दिया है....... कुछ सवालों के परिंदे,मुझसे ये अक्सर पूछते हैं। इन दिनों ये होंठ तेरे,क्यों सिले से बूझते हैं। इक नयनतारा को तुमने,कैसे अकेला कर दिया है? सुंदर सजीला वर दिया है....... सब दूर अब जाने लगे हैं,ख़्वाब भी तर्पण हुआ है। सारे विधि-विधानों में,मन मेरा अर्पण हुआ है। स्वप्न नयन में शोभते थे,आँसुओं से भर दिया है। सुंदर सजीला वर दिया है....... पढ़ना, लिखना,पाक कला,सबकुछ तो सिखलाया था। पल-पल में सम्मान घटेगा,यह क्यूँ ना बतलाया था? क्या माँ को भी तुमने कभी,ये कड़वा ज़हर दिया है? सुंदर सजीला वर दिया है........ ©शिल्पी शहडोली

#स्त्री #Parchhai #vivaah  ब्याह तो कर दिया है,लोक रंजन से गढ़ दिया है।
रीति-रिवाज को निभा कर,सुंदर सजीला वर दिया है।

देख ताक कर सब तुमने,जो आकलन किया है।
विचार तुम्हारे मानकर,मैंने भी वो वर, वर लिया है।
तुमने हस्ती के स्वरूप,परिपूर्ण एक घर दिया है।
सुंदर सजीला वर दिया है......

काश जो मन को भी पढ़ ले,ऐसी कोई तकनीक होती।
काश ये बिटिया भी तेरी,इतनी भी ना शालीन होती।
गाँव से बढ़कर के मुझको तुमने इक शहर दिया है।
सुंदर सजीला वर दिया है.......

कुछ सवालों के परिंदे,मुझसे ये अक्सर पूछते हैं।
इन दिनों ये होंठ तेरे,क्यों सिले से बूझते हैं।
इक नयनतारा को तुमने,कैसे अकेला कर दिया है?
सुंदर सजीला वर दिया है.......

सब दूर अब जाने लगे हैं,ख़्वाब भी तर्पण हुआ है।
सारे विधि-विधानों में,मन मेरा अर्पण हुआ है।
स्वप्न नयन में शोभते थे,आँसुओं से भर दिया है।
सुंदर सजीला वर दिया है.......

पढ़ना, लिखना,पाक कला,सबकुछ तो सिखलाया था।
पल-पल में सम्मान घटेगा,यह क्यूँ ना बतलाया था?
क्या माँ को भी तुमने कभी,ये कड़वा ज़हर दिया है?
सुंदर सजीला वर दिया है........

©शिल्पी शहडोली
Trending Topic