ये मन भी ना बड़ा अजीब है ना ना चंचल नहीं कहूंगी क् | हिंदी Poetry

"ये मन भी ना बड़ा अजीब है ना ना चंचल नहीं कहूंगी क्योंकि इसका स्वभाव बिल्कुल सब्ज़ी में पड़ने वाले नमक की तरह होता है। स्वादानुसार!! बिल्कुल! मन को जीवन का जैसा स्वाद आता है उसकी स्थिति वही होती है। वैसे तो हंस बोल लेता ही है और कभी जाने किस यात्रा में निकल जाता है? जहां बाहर शांति पर अंदर बहुत कोलाहल सा मचा होता है और वो यात्रा,वो सुसुप्त अवस्था कुछ पल को अथाह सुकून देते हैं फिर मन को लगता है कि बस ऐसे ही ठहर जाता यही इसी अवस्था में.... इसी अनंत यात्रा में। सारा स्वाद जीवन लेता है पर पीड़ा नामक सागर की लहरें इसी मन में उठती हैं। वो अथाह पीड़ा जाने कहां से आती है?? देखो न मन करता है बहुत कुछ लिख डालूं पर शब्द नही जोड़ पा रही। ये मन ही तो है जिसने शायद दिमाग भी काबू में कर लिया है ©Shilpi Singh"

 ये मन भी ना बड़ा अजीब है
ना ना चंचल नहीं कहूंगी
क्योंकि इसका स्वभाव बिल्कुल
सब्ज़ी में पड़ने वाले नमक की 
तरह होता है।
स्वादानुसार!!
बिल्कुल! मन को जीवन का जैसा
स्वाद आता है उसकी स्थिति वही होती है।
वैसे तो हंस बोल लेता ही है
और कभी जाने
किस यात्रा में निकल जाता है?
जहां बाहर शांति पर अंदर
बहुत कोलाहल सा मचा होता है
और वो यात्रा,वो सुसुप्त अवस्था
कुछ पल को अथाह सुकून देते हैं
फिर मन को लगता है कि बस 
ऐसे ही ठहर जाता यही 
इसी अवस्था में....
इसी अनंत यात्रा में।
सारा स्वाद जीवन लेता है
पर पीड़ा नामक सागर की लहरें
इसी मन में उठती हैं।
वो अथाह पीड़ा जाने 
कहां से आती है??
देखो न मन करता है
बहुत कुछ लिख डालूं
पर शब्द नही जोड़ पा रही।
ये मन ही तो है जिसने 
शायद दिमाग भी काबू में कर लिया है

©Shilpi Singh

ये मन भी ना बड़ा अजीब है ना ना चंचल नहीं कहूंगी क्योंकि इसका स्वभाव बिल्कुल सब्ज़ी में पड़ने वाले नमक की तरह होता है। स्वादानुसार!! बिल्कुल! मन को जीवन का जैसा स्वाद आता है उसकी स्थिति वही होती है। वैसे तो हंस बोल लेता ही है और कभी जाने किस यात्रा में निकल जाता है? जहां बाहर शांति पर अंदर बहुत कोलाहल सा मचा होता है और वो यात्रा,वो सुसुप्त अवस्था कुछ पल को अथाह सुकून देते हैं फिर मन को लगता है कि बस ऐसे ही ठहर जाता यही इसी अवस्था में.... इसी अनंत यात्रा में। सारा स्वाद जीवन लेता है पर पीड़ा नामक सागर की लहरें इसी मन में उठती हैं। वो अथाह पीड़ा जाने कहां से आती है?? देखो न मन करता है बहुत कुछ लिख डालूं पर शब्द नही जोड़ पा रही। ये मन ही तो है जिसने शायद दिमाग भी काबू में कर लिया है ©Shilpi Singh

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