पैदा मुझे एक औरत ने किया, फिर भी बड़ा होकर उसकी आँख | हिंदी विचार

"पैदा मुझे एक औरत ने किया, फिर भी बड़ा होकर उसकी आँखों मे आँखें डालकर, औरत कमजोर होती है ये कह सकता हूँ क्योंकि, मैं एक पुरूष हूँ। बचपन मे जिसके हिस्से का खाया, फिर भी बड़ा होकर जिसपर अपना हक जताया, बहन मेरे सहारे के बिना कुछ नही ये कह सकता हूँ, मैं वही एक पुरुष हूँ। बचपन से बुढापे तक जिस औरत को स्तंभ बनाया, जिसका सहारा लेकर मैं आगे ही आगे बढ़ता रहा, चोट लगी तो माँ के आँचल की छाया मिलती रही, कदम डगमगाए तो बहन के कंधों का सहारा मिला, माथे पर पड़ी शिकन कभी तो पत्नी ने सहलाया, मन हुआ उदास कभी तो बेटी के प्यार ने बहलाया, झूठी मर्दानगी मे उसके सम्मान को ठेस पहुँचाया, क्योंकि मैं एक पुरुष हूँ। नेहा गुप्ता"

 पैदा मुझे एक औरत ने किया,
फिर भी बड़ा होकर उसकी आँखों मे आँखें डालकर,
औरत कमजोर होती है ये कह सकता हूँ क्योंकि,
मैं एक पुरूष हूँ।
बचपन मे जिसके हिस्से का खाया,
फिर भी बड़ा होकर जिसपर अपना हक जताया,
बहन मेरे सहारे के बिना कुछ नही ये कह सकता हूँ,
मैं वही एक पुरुष हूँ।
बचपन से बुढापे तक जिस औरत को स्तंभ बनाया,
जिसका सहारा लेकर मैं आगे ही आगे बढ़ता रहा,
चोट लगी तो माँ के आँचल की छाया मिलती रही,
कदम डगमगाए तो बहन के कंधों का सहारा मिला,
माथे पर पड़ी शिकन कभी तो पत्नी ने सहलाया,
मन हुआ उदास कभी तो बेटी के प्यार ने बहलाया,
झूठी मर्दानगी मे उसके सम्मान को ठेस पहुँचाया,
क्योंकि मैं एक पुरुष हूँ।

नेहा गुप्ता

पैदा मुझे एक औरत ने किया, फिर भी बड़ा होकर उसकी आँखों मे आँखें डालकर, औरत कमजोर होती है ये कह सकता हूँ क्योंकि, मैं एक पुरूष हूँ। बचपन मे जिसके हिस्से का खाया, फिर भी बड़ा होकर जिसपर अपना हक जताया, बहन मेरे सहारे के बिना कुछ नही ये कह सकता हूँ, मैं वही एक पुरुष हूँ। बचपन से बुढापे तक जिस औरत को स्तंभ बनाया, जिसका सहारा लेकर मैं आगे ही आगे बढ़ता रहा, चोट लगी तो माँ के आँचल की छाया मिलती रही, कदम डगमगाए तो बहन के कंधों का सहारा मिला, माथे पर पड़ी शिकन कभी तो पत्नी ने सहलाया, मन हुआ उदास कभी तो बेटी के प्यार ने बहलाया, झूठी मर्दानगी मे उसके सम्मान को ठेस पहुँचाया, क्योंकि मैं एक पुरुष हूँ। नेहा गुप्ता

#shadesoflife

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