हर बार एक शहर छोड़ जाता हूं मै खुद से कितना घबराता | English Poetry

"हर बार एक शहर छोड़ जाता हूं मै खुद से कितना घबराता हूं दिन भर झगड़ता फिरता हूं रोशनी से मै रात में अंधेरे से घबराता हूं ये क्या कम अजियत है कि अब मै बेजार नहीं और फुरकत में मिलने से घबराता हूं ©राठौर"

 हर बार एक शहर छोड़ जाता हूं
मै खुद से कितना घबराता हूं

दिन भर झगड़ता फिरता हूं रोशनी से
मै रात में अंधेरे से घबराता हूं

ये क्या कम अजियत है कि अब मै बेजार नहीं
और फुरकत में मिलने से घबराता हूं

©राठौर

हर बार एक शहर छोड़ जाता हूं मै खुद से कितना घबराता हूं दिन भर झगड़ता फिरता हूं रोशनी से मै रात में अंधेरे से घबराता हूं ये क्या कम अजियत है कि अब मै बेजार नहीं और फुरकत में मिलने से घबराता हूं ©राठौर

#IntimateLove

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