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Poetry is nothing just overflow of feelings ### Poet at Diary talks
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खुद से ले कर उधार मैं चल पड़ा हूं अबकी बार गर्ज मेरी मर गई । मैं अब नहीं हूं भागीदार वो शख्स कोई और था थी सांस जिसकी तर बतर मैं चाहता हूं आग हो भटके सब इधर उधर मेरा काफिला है लुट चुका मैं हंस रहा हूं जार जार जान कर के जाने वालों मैं अब नही हूं भागीदार ये मेरी ग़ज़ल असल नही मेरी तो कोई नसल नहीं कैसे बांधोगे मुझे अबकी बार रस्सियों में ज़ोर कहां तुम में अब वो बात कहां क्यों खीजते हो बार बार मैं अब नहीं हूं भागीदार । मैं अब नहीं........ प्रवेश ©राठौर
राठौर
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मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का उसी को देखकर जीते हैं जिस काफिर पर दम निकले ©राठौर
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हर कदम बेहक कर चला हूं मैं बड़ा सोच समझकर चला हूं मैं इसी खुशफहमी में दिन गुजार दिए मैंने कि जब भी चला तेरी ओर चला हूं मैं होकर नाराज़ या कर शिकायत कोई तुझसे दूर भी चला तो उल्टे पैर चला हूं मैं उम्र के हर दौर में कुछ ना कुछ गवाया है मैंने एक घर बनाते बनाते , घर घर जला हूं मैं पूछती हो। किस बात का गम है जानती हो? गर्दिशों में पला हूं मैं मोहब्बत में कोई आफताब नहीं था मेरा अकेला चला हूं और घटता चला हूं मैं ©राठौर
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कर गुज़र कुछ तू भी इश्क़ में हमने निभा दिया हर फ़र्ज़ मोहब्बत में ©राठौर
हर बार एक शहर छोड़ जाता हूं मै खुद से कितना घबराता हूं दिन भर झगड़ता फिरता हूं रोशनी से मै रात में अंधेरे से घबराता हूं ये क्या कम अजियत है कि अब मै बेजार नहीं और फुरकत में मिलने से घबराता हूं ©राठौर
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