राठौर

राठौर Lives in Shimla, Himachal Pradesh, India

Poetry is nothing just overflow of feelings ### Poet at Diary talks

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खुद से ले कर उधार मैं चल पड़ा हूं अबकी बार गर्ज मेरी मर गई । मैं अब नहीं हूं भागीदार वो शख्स कोई और था थी सांस जिसकी तर बतर मैं चाहता हूं आग हो भटके सब इधर उधर मेरा काफिला है लुट चुका मैं हंस रहा हूं जार जार जान कर के जाने वालों मैं अब नही हूं भागीदार ये मेरी ग़ज़ल असल नही मेरी तो कोई नसल नहीं कैसे बांधोगे मुझे अबकी बार रस्सियों में ज़ोर कहां तुम में अब वो बात कहां क्यों खीजते हो बार बार मैं अब नहीं हूं भागीदार । मैं अब नहीं........ प्रवेश ©राठौर

#ज़िन्दगी #sadquotes  खुद से ले कर उधार मैं चल पड़ा हूं अबकी बार
गर्ज मेरी मर गई । मैं अब नहीं हूं भागीदार 

वो शख्स कोई और था थी सांस जिसकी तर बतर
मैं चाहता हूं आग हो भटके सब इधर उधर

मेरा काफिला है लुट चुका मैं हंस रहा हूं जार जार
जान कर के जाने वालों मैं अब नही हूं भागीदार

ये मेरी ग़ज़ल असल नही मेरी तो कोई नसल नहीं
कैसे बांधोगे मुझे अबकी बार

रस्सियों में ज़ोर कहां तुम में अब वो बात कहां
क्यों खीजते हो बार बार 

मैं अब नहीं हूं भागीदार । मैं अब नहीं........

प्रवेश

©राठौर

#sadquotes

12 Love

#ज़िन्दगी #Foggy  खुद से ले कर उधार मैं चल पड़ा हूं अबकी बार
गर्ज मेरी मर गई । मैं अब नहीं हूं भागीदार 

वो शख्स कोई और था थी सांस जिसकी तर बतर
मैं चाहता हूं आग हो भटके सब इधर उधर

मेरा काफिला है लुट चुका मैं हंस रहा हूं जार जार
जान कर के जाने वालों मैं अब नही हूं भागीदार

ये मेरी ग़ज़ल असल नही मेरी तो कोई नसल नहीं
कैसे बांधोगे मुझे अबकी बार

रस्सियों में ज़ोर कहां तुम में अब वो बात कहां
क्यों खीजते हो बार बार 

मैं अब नहीं हूं भागीदार । मैं अब नहीं........

प्रवेश

©राठौर

#Foggy

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मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का उसी को देखकर जीते हैं जिस काफिर पर दम निकले ©राठौर

#Travelstories  मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का

उसी को देखकर जीते हैं 

जिस काफिर पर दम निकले

©राठौर

हर कदम बेहक कर चला हूं मैं बड़ा सोच समझकर चला हूं मैं इसी खुशफहमी में दिन गुजार दिए मैंने कि जब भी चला तेरी ओर चला हूं मैं होकर नाराज़ या कर शिकायत कोई तुझसे दूर भी चला तो उल्टे पैर चला हूं मैं उम्र के हर दौर में कुछ ना कुछ गवाया है मैंने एक घर बनाते बनाते , घर घर जला हूं मैं पूछती हो। किस बात का गम है जानती हो? गर्दिशों में पला हूं मैं मोहब्बत में कोई आफताब नहीं था मेरा अकेला चला हूं और घटता चला हूं मैं ©राठौर

#Butterfly  हर कदम बेहक कर चला हूं मैं
बड़ा सोच समझकर चला हूं मैं

इसी खुशफहमी में दिन गुजार दिए मैंने
कि जब भी चला तेरी ओर चला हूं मैं

होकर नाराज़ या कर शिकायत कोई
तुझसे दूर भी चला तो उल्टे पैर चला हूं मैं

उम्र के हर दौर में कुछ ना कुछ गवाया है मैंने
एक घर बनाते बनाते , घर घर जला हूं मैं

पूछती हो।   किस बात का गम है
जानती हो?  गर्दिशों में पला हूं मैं

मोहब्बत में कोई आफताब नहीं था मेरा 
अकेला चला हूं और घटता चला हूं मैं

©राठौर

#Butterfly

9 Love

कर गुज़र कुछ तू भी इश्क़ में हमने निभा दिया हर फ़र्ज़ मोहब्बत में ©राठौर

#intimacy  कर गुज़र कुछ तू भी इश्क़ में

हमने निभा दिया हर फ़र्ज़ मोहब्बत में

©राठौर

#intimacy

12 Love

हर बार एक शहर छोड़ जाता हूं मै खुद से कितना घबराता हूं दिन भर झगड़ता फिरता हूं रोशनी से मै रात में अंधेरे से घबराता हूं ये क्या कम अजियत है कि अब मै बेजार नहीं और फुरकत में मिलने से घबराता हूं ©राठौर

#IntimateLove  हर बार एक शहर छोड़ जाता हूं
मै खुद से कितना घबराता हूं

दिन भर झगड़ता फिरता हूं रोशनी से
मै रात में अंधेरे से घबराता हूं

ये क्या कम अजियत है कि अब मै बेजार नहीं
और फुरकत में मिलने से घबराता हूं

©राठौर
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