खुद से ले कर उधार मैं चल पड़ा हूं अबकी बार
गर्ज मेरी मर गई । मैं अब नहीं हूं भागीदार
वो शख्स कोई और था थी सांस जिसकी तर बतर
मैं चाहता हूं आग हो भटके सब इधर उधर
मेरा काफिला है लुट चुका मैं हंस रहा हूं जार जार
जान कर के जाने वालों मैं अब नही हूं भागीदार
ये मेरी ग़ज़ल असल नही मेरी तो कोई नसल नहीं
कैसे बांधोगे मुझे अबकी बार
रस्सियों में ज़ोर कहां तुम में अब वो बात कहां
क्यों खीजते हो बार बार
मैं अब नहीं हूं भागीदार । मैं अब नहीं........
प्रवेश
©राठौर
#Foggy