हर कदम बेहक कर चला हूं मैं
बड़ा सोच समझकर चला हूं मैं
इसी खुशफहमी में दिन गुजार दिए मैंने
कि जब भी चला तेरी ओर चला हूं मैं
होकर नाराज़ या कर शिकायत कोई
तुझसे दूर भी चला तो उल्टे पैर चला हूं मैं
उम्र के हर दौर में कुछ ना कुछ गवाया है मैंने
एक घर बनाते बनाते , घर घर जला हूं मैं
पूछती हो। किस बात का गम है
जानती हो? गर्दिशों में पला हूं मैं
मोहब्बत में कोई आफताब नहीं था मेरा
अकेला चला हूं और घटता चला हूं मैं
©राठौर
#Butterfly