कदम (दोहे)
कदम - कदम पर ठोकरें, खाता है इंसान।
जो संभल उससे गया, हो उसका गुणगान।।
कदम - कदम पर टोक हो, जीना लगे मुहाल।
कैसे किसको बोध हो, हम क्यों हैं बेहाल।।
एक कदम तुम जो बढ़ो, वो बढ़ते हैं चार।
प्रेम भाव से तुम रहो, मिल जाते भरतार।।
मेरे पापा कह गए, रखो कदम संभाल।
एक कदम मजबूत हो, तभी बढ़ाओ चाल।।
उचित राह पर हो कदम, मिलता है ठहराव।
कहते हैं सज्जन सभी, निर्मल यही स्वभाव।।
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देवेश दीक्षित
©Devesh Dixit
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कदम (दोहे)
कदम - कदम पर ठोकरें, खाता है इंसान।
जो संभल उससे गया, हो उसका गुणगान।।
कदम - कदम पर टोक हो, जीना लगे मुहाल।