अकेला पढ़ा हूँ ढेर! फ़र्श पर कपड़े की गठरी सा न मान, | हिंदी Poetry

अकेला पढ़ा हूँ
ढेर! फ़र्श पर
कपड़े की गठरी सा
न मान, न सम्मान
निर्जीव, निष्प्राण
बेडौल निराकार
शो खत्म होने के बाद
क्यों ऐसा तिरस्कार?

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