White ना मंजिल नज़र आती है न कहीं किनारा हर कोई | हिंदी कविता

"White ना मंजिल नज़र आती है न कहीं किनारा हर कोई आगे बढ़ रहा है,लेकर एक दूसरे का सहारा हर कोई दौड़ में है ,दिमाग में भरी उलझने हैं लगे जैसे हर कोई किसी न किसी होड़ में है । आगे बढ़ना चाहते हैं या निकलना चाहते हैं समझ नहीं आता , सफल होना चाहते हैं , या किसी को हराकर दिखाना चाहते हैं। यह सब मन के खेल मन की अदाएं हैं। कभी यह रूठता है कभी मानता है । कभी रुकता है तो कभी सरपट भागता है । ऐ मन तू इतना जिद्दी क्यूं है ? हर समय इधर से उधर भटकता क्यूं है? कब वह दिन आएगा जब तू शांत होगा, काबू में होगा सब समझ ठहर जाएगा । तब मंजिल भी दिखेगी , रास्ता भी साफ़ होगा , किनारे भी मिलेंगे ,अगर तू मेरे साथ होगा । तब ना किसी से प्रतिस्पर्धा की दौड़ होगी ना कहीं शोर होगा ,सामने लक्ष्य होगा, पहुंचना सरल होगा बस तू एक बार समझ जा, थोड़ा झुक जा थोड़ा संवर जा इतना ही हम सब पर तुम्हारा यह कर्म होगा ©Jyoti Mahajan"

 White  
ना मंजिल नज़र आती है न कहीं किनारा
हर कोई आगे बढ़ रहा है,लेकर एक दूसरे का सहारा
हर कोई दौड़ में है ,दिमाग में भरी उलझने हैं
लगे जैसे हर कोई किसी न किसी होड़ में है ।
आगे बढ़ना चाहते हैं या निकलना चाहते हैं 
समझ नहीं आता , सफल होना चाहते हैं ,
           या किसी को हराकर दिखाना चाहते हैं।                
यह सब मन के खेल मन की अदाएं हैं।
कभी यह रूठता है  कभी मानता है ।
कभी रुकता है तो  कभी सरपट भागता है ।
ऐ मन तू इतना जिद्दी क्यूं है ?
हर समय इधर से उधर भटकता क्यूं है? 
कब वह दिन आएगा जब तू शांत  होगा, 
काबू में होगा सब समझ ठहर जाएगा ।
तब मंजिल भी दिखेगी , रास्ता भी साफ़ होगा ,
किनारे भी मिलेंगे ,अगर तू मेरे साथ होगा ।
तब ना किसी से प्रतिस्पर्धा की दौड़ होगी 
ना कहीं शोर होगा ,सामने लक्ष्य होगा, 
पहुंचना सरल होगा 
बस तू एक बार समझ जा,
थोड़ा झुक जा थोड़ा संवर जा 
इतना ही हम सब पर तुम्हारा यह कर्म होगा

©Jyoti Mahajan

White ना मंजिल नज़र आती है न कहीं किनारा हर कोई आगे बढ़ रहा है,लेकर एक दूसरे का सहारा हर कोई दौड़ में है ,दिमाग में भरी उलझने हैं लगे जैसे हर कोई किसी न किसी होड़ में है । आगे बढ़ना चाहते हैं या निकलना चाहते हैं समझ नहीं आता , सफल होना चाहते हैं , या किसी को हराकर दिखाना चाहते हैं। यह सब मन के खेल मन की अदाएं हैं। कभी यह रूठता है कभी मानता है । कभी रुकता है तो कभी सरपट भागता है । ऐ मन तू इतना जिद्दी क्यूं है ? हर समय इधर से उधर भटकता क्यूं है? कब वह दिन आएगा जब तू शांत होगा, काबू में होगा सब समझ ठहर जाएगा । तब मंजिल भी दिखेगी , रास्ता भी साफ़ होगा , किनारे भी मिलेंगे ,अगर तू मेरे साथ होगा । तब ना किसी से प्रतिस्पर्धा की दौड़ होगी ना कहीं शोर होगा ,सामने लक्ष्य होगा, पहुंचना सरल होगा बस तू एक बार समझ जा, थोड़ा झुक जा थोड़ा संवर जा इतना ही हम सब पर तुम्हारा यह कर्म होगा ©Jyoti Mahajan

#Free जिद्दी मन

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