जब अपने अपने ना लगे जब घर पराया लगने लगे ओर जब ज़िन्दगी भी ज़िन्दगी न लगे।।
फिर भी इस बोझ को हम अपने सर रख कर
आगे बढ़ते जाते है।।
पर ऐसा होता क्यों है
हम किस सफर में चले जाते है
जहां अपने ही खो जाते है
प्यार परवाह ओर मुस्कुराता हुआ चेहरा
सब कहा गुम हो जाते है
खुशी में खुशी से ज्यादा दर्द होता है
सब होते है फिर भी ज़िन्दगी में कुछ कम होता है
पर फिर भी हम यूं ही चलते जाते है
ना जाने किस मंजिल को पाना चाहते है
खामोशी भरी राह ओर उसमे गुमनाम मुसाफिर से
हम क्यों चलते जाते है
ना जाने ये अजनबी रास्ते कहा ले जाते हैं।।
ज़िन्दगी के सफ़र में हम भी गुमनाम मुसाफिर बन जाते है
अकेले ही पता नहीं क्यों चलते जाते है...
ना जाने क्यों हम खुद को खो कर
क्या पाना चाहते है!
और अपनों से फिर दूर हो जाते है ।।
हम ना जाने क्या पाना चाहते है
कभी अपनों से कभी गैरो से
कभी खुद से ही लड़ते जाते है।।
क्या है ये जिसे हम समझ नहीं पाते हैं
या समझना नहीं चाहते है??
©ROSHNI
ना जाने हम कहा जाना चाहते है
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