शब्द बहुत है कहने को,भाव तैयार है बहने को, हृदय गद | हिंदी कविता

"शब्द बहुत है कहने को,भाव तैयार है बहने को, हृदय गद् गद् गदराया,अश्रु नयन है पथराया कल्पना भी ढूंढ रही उदगारो को, जैसे नदी एक है सहती दो किनारों को ! चले पथ सबके विश्वास से,सब थे दिल सब ही खास थे ! जो लूटाया स्नेह ,अब मैं अभिभूत हुं मैं कभी था वर्तमान ,अब मैं ही भूत हुं जोड़े दोनो हाथ से ,धन्य धन्य करता रहूं अविस्मरणीय स्मृति से,तिजोरियां भरता रहूं ! ✍️ रामगोपाल वर्मा कवि सरपट सादलपुरी ©rohit verma"

 शब्द बहुत है कहने को,भाव तैयार है बहने को,
हृदय गद् गद् गदराया,अश्रु नयन है पथराया 
कल्पना भी ढूंढ रही उदगारो को,
जैसे नदी एक है सहती दो किनारों को ! 
चले पथ सबके विश्वास से,सब थे दिल सब ही खास थे ! 
जो लूटाया स्नेह ,अब मैं अभिभूत हुं 
 मैं कभी था वर्तमान ,अब मैं ही भूत हुं  
 जोड़े दोनो हाथ से ,धन्य धन्य करता रहूं 
         अविस्मरणीय स्मृति से,तिजोरियां भरता रहूं !                 
✍️ रामगोपाल  वर्मा 
           कवि सरपट सादलपुरी

©rohit verma

शब्द बहुत है कहने को,भाव तैयार है बहने को, हृदय गद् गद् गदराया,अश्रु नयन है पथराया कल्पना भी ढूंढ रही उदगारो को, जैसे नदी एक है सहती दो किनारों को ! चले पथ सबके विश्वास से,सब थे दिल सब ही खास थे ! जो लूटाया स्नेह ,अब मैं अभिभूत हुं मैं कभी था वर्तमान ,अब मैं ही भूत हुं जोड़े दोनो हाथ से ,धन्य धन्य करता रहूं अविस्मरणीय स्मृति से,तिजोरियां भरता रहूं ! ✍️ रामगोपाल वर्मा कवि सरपट सादलपुरी ©rohit verma

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