शब्द बहुत है कहने को,भाव तैयार है बहने को,
हृदय गद् गद् गदराया,अश्रु नयन है पथराया
कल्पना भी ढूंढ रही उदगारो को,
जैसे नदी एक है सहती दो किनारों को !
चले पथ सबके विश्वास से,सब थे दिल सब ही खास थे !
जो लूटाया स्नेह ,अब मैं अभिभूत हुं
मैं कभी था वर्तमान ,अब मैं ही भूत हुं
जोड़े दोनो हाथ से ,धन्य धन्य करता रहूं
अविस्मरणीय स्मृति से,तिजोरियां भरता रहूं !
✍️ रामगोपाल वर्मा
कवि सरपट सादलपुरी
©rohit verma
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