"मैं सिगरेट पीना तो नहीं जानता,
पर कश लेने का सुकून समझता हूँ|"
वो शाम याद है?
जब तुम्हारे होठों पर रखे ,
उस जलते हुए से लम्हे को ,
अपने होठों की एक ही कश में ज़हन तक उतार गया था मैं|
उस कश के साथ जितनी आग उतरी थी सीने में ,
इक पूरी उम्र छोटी है ,
उसकी आँच धीमी करने को|
मेरी धड़कन का हर हिस्सा ,
बाखुशी फूँक आया था खुद को उस आग में ,
क्योंकि उससे उठने वाले धुएँ से ,
आज भी महकता रहता है, मेरे एहसासों का शहर |
जिंदा रहता है - तुममें उलझा मेरा वजूद ।
मुस्कराती रहती है - मुझमें साँस लेती तुम्हारी मौजूदगी |
ये आग कितना कुछ जला दे पता नहीं ,
पर जलना हमेशा मेरा शौक रहा और रहेगा |
ये कैसे बुझेगी ,कब बुझेगी , खुदा जाने ,
पर ये बुझी तो शायद मैं भी बुझ जाऊँगा इसके साथ ही|
इसलिए फूँकता रहता हूँ मैं रोज़ खुद को ,
तेरे ही किसी ख्याल में,
ताकि मिलती रहे तेरे होठों पर, उस शाम की तरह ही,
इश्क की आधी सुलगी सी कोई कश |
सच मानो ,इतना सुकून है जल जाने में ,
कि मेरा मुरझाया चेहरा और सूखे होंठ देखते हैं लोग ,
तो पूछ बैठते हैं
"फूँकने की लत है क्या ?"
और मैं, जवाब में, बस यही कह पाता हूँ-
"मैं सिगरेट पीना तो नहीं जानता ,
पर कश लेने का सुकून समझता हूँ ||"
- निखिल
#सिगरेट #RDV19 @Ashish Dwivedi
#poem #Hindi
"मैं सिगरेट पीना तो नहीं जानता,*
पर कश लेने का सुकून समझता हूँ|"
वो शाम याद है?
जब तुम्हारे होठों पर रखे ,