मैं सिगरेट पीना तो नहीं जानता, पर कश लेने का सुकू | हिंदी Love

""मैं सिगरेट पीना तो नहीं जानता, पर कश लेने का सुकून समझता हूँ|" वो शाम याद है? जब तुम्हारे होठों पर रखे , उस जलते हुए से लम्हे को , अपने होठों की एक ही कश में ज़हन तक उतार गया था मैं| उस कश के साथ जितनी आग उतरी थी सीने में , इक पूरी उम्र छोटी है , उसकी आँच धीमी करने को| मेरी धड़कन का हर हिस्सा , बाखुशी फूँक आया था खुद को उस आग में , क्योंकि उससे उठने वाले धुएँ से , आज भी महकता रहता है, मेरे एहसासों का शहर | जिंदा रहता है - तुममें उलझा मेरा वजूद । मुस्कराती रहती है - मुझमें साँस लेती तुम्हारी मौजूदगी | ये आग कितना कुछ जला दे पता नहीं , पर जलना हमेशा मेरा शौक रहा और रहेगा | ये कैसे बुझेगी ,कब बुझेगी , खुदा जाने , पर ये बुझी तो शायद मैं भी बुझ जाऊँगा इसके साथ ही| इसलिए फूँकता रहता हूँ मैं रोज़ खुद को , तेरे ही किसी ख्याल में, ताकि मिलती रहे तेरे होठों पर, उस शाम की तरह ही, इश्क की आधी सुलगी सी कोई कश | सच मानो ,इतना सुकून है जल जाने में , कि मेरा मुरझाया चेहरा और सूखे होंठ देखते हैं लोग , तो पूछ बैठते हैं "फूँकने की लत है क्या ?" और मैं, जवाब में, बस यही कह पाता हूँ- "मैं सिगरेट पीना तो नहीं जानता , पर कश लेने का सुकून समझता हूँ ||" - निखिल"

 "मैं सिगरेट पीना तो नहीं जानता,
पर कश लेने का सुकून समझता हूँ|"

वो शाम याद है?
जब तुम्हारे होठों पर रखे ,
उस जलते हुए से लम्हे को ,
अपने होठों की एक ही कश में ज़हन तक उतार गया था मैं|

उस कश के साथ जितनी आग उतरी थी सीने में  ,
इक पूरी उम्र छोटी है ,
उसकी आँच धीमी करने को|

मेरी धड़कन का हर हिस्सा ,
बाखुशी फूँक आया था खुद को उस आग में ,
क्योंकि उससे उठने वाले धुएँ से ,
आज भी महकता रहता है, मेरे एहसासों का शहर |

जिंदा रहता है - तुममें उलझा मेरा वजूद ।
मुस्कराती रहती  है - मुझमें साँस लेती तुम्हारी मौजूदगी |

ये आग कितना कुछ जला दे पता नहीं ,
पर जलना हमेशा मेरा शौक रहा और रहेगा |
ये कैसे बुझेगी ,कब बुझेगी , खुदा जाने ,
पर ये बुझी तो शायद मैं भी बुझ जाऊँगा इसके साथ ही|

इसलिए फूँकता रहता हूँ मैं रोज़ खुद को ,
तेरे ही किसी ख्याल में,
ताकि मिलती रहे तेरे होठों पर, उस शाम की तरह ही,
इश्क की आधी सुलगी सी कोई कश |

सच मानो ,इतना सुकून है जल जाने में ,
कि मेरा मुरझाया चेहरा और सूखे होंठ देखते हैं लोग ,
तो पूछ बैठते हैं 
"फूँकने की लत है क्या ?"

और मैं, जवाब में, बस यही कह पाता हूँ- 

"मैं सिगरेट पीना तो नहीं जानता ,
पर कश लेने का सुकून समझता हूँ ||"

                                                 
                                                - निखिल

"मैं सिगरेट पीना तो नहीं जानता, पर कश लेने का सुकून समझता हूँ|" वो शाम याद है? जब तुम्हारे होठों पर रखे , उस जलते हुए से लम्हे को , अपने होठों की एक ही कश में ज़हन तक उतार गया था मैं| उस कश के साथ जितनी आग उतरी थी सीने में , इक पूरी उम्र छोटी है , उसकी आँच धीमी करने को| मेरी धड़कन का हर हिस्सा , बाखुशी फूँक आया था खुद को उस आग में , क्योंकि उससे उठने वाले धुएँ से , आज भी महकता रहता है, मेरे एहसासों का शहर | जिंदा रहता है - तुममें उलझा मेरा वजूद । मुस्कराती रहती है - मुझमें साँस लेती तुम्हारी मौजूदगी | ये आग कितना कुछ जला दे पता नहीं , पर जलना हमेशा मेरा शौक रहा और रहेगा | ये कैसे बुझेगी ,कब बुझेगी , खुदा जाने , पर ये बुझी तो शायद मैं भी बुझ जाऊँगा इसके साथ ही| इसलिए फूँकता रहता हूँ मैं रोज़ खुद को , तेरे ही किसी ख्याल में, ताकि मिलती रहे तेरे होठों पर, उस शाम की तरह ही, इश्क की आधी सुलगी सी कोई कश | सच मानो ,इतना सुकून है जल जाने में , कि मेरा मुरझाया चेहरा और सूखे होंठ देखते हैं लोग , तो पूछ बैठते हैं "फूँकने की लत है क्या ?" और मैं, जवाब में, बस यही कह पाता हूँ- "मैं सिगरेट पीना तो नहीं जानता , पर कश लेने का सुकून समझता हूँ ||" - निखिल

#सिगरेट #RDV19 @Ashish Dwivedi
#poem #Hindi

"मैं सिगरेट पीना तो नहीं जानता,*
पर कश लेने का सुकून समझता हूँ|"

वो शाम याद है?
जब तुम्हारे होठों पर रखे ,

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