अनजान पथिक

अनजान पथिक Lives in Kanpur, Uttar Pradesh, India

बनता बिगड़ता एक एहसास हूँ। कभी आम हूँ, कभी खास हूँ।

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मैं धूप में बैठता हूँ तो खिल उठता है मेरा रोम-रोम, बारिश होती है तो अपने अन्दर कुछ रिसता हुआ महसूस होता है। रोशनी में ढूँढता हूँ दाना-पानी और अंधेरा होने पर मुरझा जाता हूँ, बंद कर लेता हूँ अपने सारे खिड़की दरवाज़े किसी बाहरी खटके से बचने के लिए। मुझे कई बार लगता है कि मेरे अंदर एक पेड़ है, जो इस जिस्म में क़ैद कर दिया गया है। अपनी जड़ों की टोह पाने के लिए मैंने कई बार खरोंचा है अपनी रूह की दीवारों को। वहाँ बस एक ठण्डी सी चुप है। जाने अजाने एक ख़्वाहिश गूँजा करती है, बस। जब सारे सूरज, चाँद, तारे बुझा दिए जाएँगे वक़्त की एक फूँक से, मैं एक ज़िद की तरह उग आऊँगा कोपलों के रूप में। मुझे मिट्टी में रोप कर काश नए जीवन बनाए जा सकें! सुनो, उस वक़्त तुम बस अपनी पलकों के नीचे मेरे लिए कुछ बूँदें बचा कर रखना। मेरी जड़ें तुम्हारे आँसुओं की छुअन पहचानती हैं। तुम्हारे बाद, मैंने अपने अन्दर उस छुअन से अपनी जड़ों को फैलता हुआ महसूस किया है। हम इंसान के रूप में शायद कमज़ोर हो जायें, पर एक पेड़ के रूप में मज़बूत हो जाते हैं किसी के जाने के बाद।

#विचार #thought #Hindi  मैं धूप में बैठता हूँ तो खिल उठता है मेरा रोम-रोम, बारिश होती है तो अपने अन्दर कुछ रिसता हुआ महसूस होता है। रोशनी में ढूँढता हूँ दाना-पानी और अंधेरा होने पर मुरझा जाता हूँ, बंद कर लेता हूँ अपने सारे खिड़की दरवाज़े किसी बाहरी खटके से बचने के लिए।

मुझे कई बार लगता है कि मेरे अंदर एक पेड़ है, जो इस जिस्म में क़ैद कर दिया गया है। 

अपनी जड़ों की टोह पाने के लिए मैंने कई बार खरोंचा है अपनी रूह की दीवारों को। वहाँ बस एक ठण्डी सी चुप है।
जाने अजाने एक ख़्वाहिश गूँजा करती है, बस।
जब सारे सूरज, चाँद, तारे बुझा दिए जाएँगे वक़्त की एक फूँक से, मैं एक ज़िद की तरह उग आऊँगा कोपलों के रूप में।
मुझे मिट्टी में रोप कर काश नए जीवन बनाए जा सकें!

सुनो, उस वक़्त तुम बस अपनी पलकों के नीचे मेरे लिए कुछ बूँदें बचा कर रखना। मेरी जड़ें तुम्हारे आँसुओं की छुअन पहचानती हैं। तुम्हारे बाद, मैंने अपने अन्दर उस छुअन से अपनी जड़ों को फैलता हुआ महसूस किया है।

हम इंसान के रूप में शायद कमज़ोर हो जायें, पर एक पेड़ के रूप में मज़बूत हो जाते हैं किसी के जाने के बाद।

मैं धूप में बैठता हूँ तो खिल उठता है मेरा रोम-रोम, बारिश होती है तो अपने अन्दर कुछ रिसता हुआ महसूस होता है। रोशनी में ढूँढता हूँ दाना-पानी और अंधेरा होने पर मुरझा जाता हूँ, बंद कर लेता हूँ अपने सारे खिड़की दरवाज़े किसी बाहरी खटके से बचने के लिए। मुझे कई बार लगता है कि मेरे अंदर एक पेड़ है, जो इस जिस्म में क़ैद कर दिया गया है। अपनी जड़ों की टोह पाने के लिए मैंने कई बार खरोंचा है अपनी रूह की दीवारों को। वहाँ बस एक ठण्डी सी चुप है। जाने अजाने एक ख़्वाहिश गूँजा करती है, बस। जब सारे सूरज, चाँद, तारे बुझ

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"मैं सिगरेट पीना तो नहीं जानता, पर कश लेने का सुकून समझता हूँ|" वो शाम याद है? जब तुम्हारे होठों पर रखे , उस जलते हुए से लम्हे को , अपने होठों की एक ही कश में ज़हन तक उतार गया था मैं| उस कश के साथ जितनी आग उतरी थी सीने में , इक पूरी उम्र छोटी है , उसकी आँच धीमी करने को| मेरी धड़कन का हर हिस्सा , बाखुशी फूँक आया था खुद को उस आग में , क्योंकि उससे उठने वाले धुएँ से , आज भी महकता रहता है, मेरे एहसासों का शहर | जिंदा रहता है - तुममें उलझा मेरा वजूद । मुस्कराती रहती है - मुझमें साँस लेती तुम्हारी मौजूदगी | ये आग कितना कुछ जला दे पता नहीं , पर जलना हमेशा मेरा शौक रहा और रहेगा | ये कैसे बुझेगी ,कब बुझेगी , खुदा जाने , पर ये बुझी तो शायद मैं भी बुझ जाऊँगा इसके साथ ही| इसलिए फूँकता रहता हूँ मैं रोज़ खुद को , तेरे ही किसी ख्याल में, ताकि मिलती रहे तेरे होठों पर, उस शाम की तरह ही, इश्क की आधी सुलगी सी कोई कश | सच मानो ,इतना सुकून है जल जाने में , कि मेरा मुरझाया चेहरा और सूखे होंठ देखते हैं लोग , तो पूछ बैठते हैं "फूँकने की लत है क्या ?" और मैं, जवाब में, बस यही कह पाता हूँ- "मैं सिगरेट पीना तो नहीं जानता , पर कश लेने का सुकून समझता हूँ ||" - निखिल

#सिगरेट #Hindi #RDV19  "मैं सिगरेट पीना तो नहीं जानता,
पर कश लेने का सुकून समझता हूँ|"

वो शाम याद है?
जब तुम्हारे होठों पर रखे ,
उस जलते हुए से लम्हे को ,
अपने होठों की एक ही कश में ज़हन तक उतार गया था मैं|

उस कश के साथ जितनी आग उतरी थी सीने में  ,
इक पूरी उम्र छोटी है ,
उसकी आँच धीमी करने को|

मेरी धड़कन का हर हिस्सा ,
बाखुशी फूँक आया था खुद को उस आग में ,
क्योंकि उससे उठने वाले धुएँ से ,
आज भी महकता रहता है, मेरे एहसासों का शहर |

जिंदा रहता है - तुममें उलझा मेरा वजूद ।
मुस्कराती रहती  है - मुझमें साँस लेती तुम्हारी मौजूदगी |

ये आग कितना कुछ जला दे पता नहीं ,
पर जलना हमेशा मेरा शौक रहा और रहेगा |
ये कैसे बुझेगी ,कब बुझेगी , खुदा जाने ,
पर ये बुझी तो शायद मैं भी बुझ जाऊँगा इसके साथ ही|

इसलिए फूँकता रहता हूँ मैं रोज़ खुद को ,
तेरे ही किसी ख्याल में,
ताकि मिलती रहे तेरे होठों पर, उस शाम की तरह ही,
इश्क की आधी सुलगी सी कोई कश |

सच मानो ,इतना सुकून है जल जाने में ,
कि मेरा मुरझाया चेहरा और सूखे होंठ देखते हैं लोग ,
तो पूछ बैठते हैं 
"फूँकने की लत है क्या ?"

और मैं, जवाब में, बस यही कह पाता हूँ- 

"मैं सिगरेट पीना तो नहीं जानता ,
पर कश लेने का सुकून समझता हूँ ||"

                                                 
                                                - निखिल

#सिगरेट #RDV19 @Ashish Dwivedi #poem #Hindi "मैं सिगरेट पीना तो नहीं जानता,* पर कश लेने का सुकून समझता हूँ|" वो शाम याद है? जब तुम्हारे होठों पर रखे ,

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#bekhayalichallenge #nojotopoetry #nojotohindi #Bekhayali

#Bekhayali #bekhayalichallenge challenge accepted #nojoto #nojotopoetry #nojotohindi भीगी-भीगी जुल्फों वाली कोई ग़ज़ल जब मन छू जाए, किसी पुराने ख़त में जब उसकी मेहँदी की खुशबू आये। जब रात गुज़र जाये चंदा में उसे देखते खिड़की से, आँखें पढ़कर जब माँ पूछे-"दिल आया है ,किसी लड़की पे? "

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#nojotowriting #nojotopoetry #nojotohindi

सब वक़्त के पानी के संग चुपचाप बहने दीजिये। कुछ ज़ख्म गहरे हैं अगर, गहरे ही रहने दीजिये। बदलेंगे परदे आँखों के तो नज़र भी बदलेगी तब, अभी खामोशियों का दौर है, खामोश रहने दीजिये। है फ़ासलों को जिद अगर, तो खुद ही कम हो जायेंगे। इन वक़्त की शाखों पे मीठे फल कभी तो आयेंगे। जिसको है कहना जो, उसे चुपचाप कहने दीजिये।

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चल चलें, चाँद के पार चलें। आ जा हमदम एक बार चलें बर्फ़ीली मस्त हवाओं के पंखों पे रात ये गुज़रे जब, एक ख्वाब की कश्ती आँखों के, बहते दरिया में उतरे जब, तब बिन कुछ बोले, जुल्फें खोले आ थम जा इन बाहों में, तारों के फूल है खिले जहाँ बादल के गाँव है राहों में। वहाँ वक्त की सारी बंदिश से, ज़रा दूर मेरे इकरार चलें। चल चलें चाँद के पार चलें, आ जा हमदम एक बार चलें। उस फ़लक को करके पार वहाँ, चलते हैं ऐसे देस सनम, तितली-तितली ,पत्ता-पत्ता ,खुशबू-खुशबू जहाँ होंगे हम। जहाँ हवा मोहब्बत गाएगी, बारिश भी इश्क सुनाएगी। जहाँ लैला बनकर रात सुबह के मजनूँ में ढल जायेगी। जहाँ सही न हो, न गलत हो कुछ, चल वहाँ मेरे दिलदार चलें। चल चलें, चाँद के पार चलें। आ जा हमदम एक बार चलें। जहाँ धूप के पीले पन्नों पर, हम रोज नया इक राज़ लिखें। इबादत ,ख्वाब ,हकीकत, प्यार के सब के सब अंदाज़ लिखें। और हो जायें दीवाने यूँ, कि वक्त थके ,धडकनें थमें, खुद खुदा रोक दे जब सब कुछ , तब भी अपना ये प्यार चले। सदियों तक रूह तके तुझको, सदियों तक ये दीदार चले। दिल कभी न जीत सके तुझसे, इतनी लंबी ये हार चले। चल चलें, चाँद के पार चलें। आ जा हमदम एक बार चलें|

#कविता #nojotolucknow #nojotopoetry #nojotohindi  चल चलें, चाँद के पार चलें।
आ जा हमदम एक बार चलें 

बर्फ़ीली मस्त हवाओं के पंखों पे रात ये गुज़रे जब,
एक ख्वाब की कश्ती आँखों के, बहते दरिया में उतरे जब,
तब बिन कुछ बोले, जुल्फें खोले
आ थम जा इन बाहों में,
तारों के फूल है खिले जहाँ
बादल के गाँव है राहों में।
वहाँ वक्त की सारी बंदिश से, ज़रा दूर मेरे इकरार चलें।
चल चलें चाँद के पार चलें,
आ जा हमदम एक बार चलें।


उस फ़लक को करके पार वहाँ, चलते हैं ऐसे  देस सनम,
तितली-तितली ,पत्ता-पत्ता ,खुशबू-खुशबू जहाँ होंगे हम।
जहाँ हवा मोहब्बत गाएगी, बारिश भी इश्क सुनाएगी।
जहाँ लैला बनकर रात सुबह के मजनूँ में ढल जायेगी।
जहाँ सही न हो, न गलत हो कुछ, चल वहाँ मेरे दिलदार चलें।
चल चलें, चाँद के पार चलें।
आ जा हमदम एक बार चलें।

  
जहाँ धूप के पीले पन्नों पर, हम रोज नया इक राज़ लिखें।
इबादत ,ख्वाब ,हकीकत,
प्यार के सब के सब अंदाज़ लिखें।
और हो जायें दीवाने यूँ, कि वक्त थके ,धडकनें थमें,
खुद खुदा रोक दे जब सब कुछ , तब भी अपना ये प्यार चले।
सदियों तक रूह तके तुझको,
सदियों तक ये दीदार चले।
दिल कभी न जीत सके तुझसे, इतनी लंबी ये हार चले।
चल चलें, चाँद के पार चलें।
आ जा हमदम एक बार चलें|

चल चलें, चाँद के पार चलें। आ जा हमदम एक बार चलें  बर्फ़ीली मस्त हवाओं के पंखों पे रात ये गुज़रे जब, एक ख्वाब की कश्ती आँखों के, बहते दरिया में उतरे जब,

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हम बहुत दिनों तक 'ठीक होने' का नाटक करते रहते हैं। फिर एक दिन कोई हमारे कंधों पर हाथ रखकर,  आँखों में एकटक झाँकते हुए जब पूछता है हमसे - "तुम ठीक हो"? हम जाने किस बात पर फफक कर रो पड़ते हैं। हम सब एक अरसे तक अपना 'ठीक ना होना' सिर्फ इस वजह से छिपाते हैं कि एक दिन अचानक ऐसे ही एक सवाल पर ठीक से रो सकें, और ठीक हो सकें। -निखिल श्रीवास्तव

#विचार #nojotohindi  हम बहुत दिनों तक 'ठीक होने' का नाटक करते रहते हैं।

फिर एक दिन कोई हमारे कंधों पर हाथ रखकर, 

आँखों में एकटक झाँकते हुए जब पूछता है हमसे -

"तुम ठीक हो"?

हम जाने किस बात पर फफक कर रो पड़ते हैं।


हम सब एक अरसे तक अपना 'ठीक ना होना' सिर्फ इस वजह से छिपाते हैं कि एक दिन अचानक ऐसे ही एक सवाल पर ठीक से रो सकें, और ठीक हो सकें।


-निखिल श्रीवास्तव

#nojoto #nojotohindi

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