घर से दूर घर की याद बहुत आती है।
सुबह तो भाग दौड़ मे निकल जाती,
शाम संग यादों का कारवां लाती है,
घर से दूर घर की याद बहुत आती है।
सब कुछ है इस शहर मे,
बस अपनापन नही, कोई अपना नही
करवटें बदलती रातों मे माँ की आँचल..।
जरा सा तबियत बिगड़ जाने पे,
पापा का वो हलचल...
गाँव का वो डॉक्टर...
जब खाना पकाते वक्त कभी अचानक से
जब अंगुली जल जाती है,
खाना बन गया है आके खालो ये आवाज
कान से होकर आँखों तक आ जाती है...
बस मे धक्के खाते वक्त
पापा का बाईक से स्कूल छोड़नी याद आती है।
बड़े हो जाने पर बचपन की याद सताती है।
घर से दूर घर की याद बहुत आती है।।
©r̴i̴t̴i̴k̴a̴ shukla
#LongRoad कविता # घर की याद...