मन मे हर रोज ना जाने कितनी ख्वाहिशें शोर
मचाती है।
दिल बच्चा बनना चाहता है पर समझदारी बचपना
खा जाती है।
जब उम्र का एक ऐसा पड़ाव हो जहाँ शब्द भी देतें
घाव हों। तब शिकायते औरो से नही खुद से रह जाती है।
तब बीते दिन वो बचपन की बहुत याद आती है।।
वो लड़कपन , वो बेफिक्री, आज जब हर बात सोच समझ
के बोलना होता है, तो याद बचपन वाली नादानी आती है ।
©r̴i̴t̴i̴k̴a̴ shukla
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