122 122 122 12 मुझे उम्र लंबी नहीं चाहिए क़ज़ा भी तो | हिंदी शायरी

"122 122 122 12 मुझे उम्र लंबी नहीं चाहिए क़ज़ा भी तो जल्दी नहीं चाहिए हैं ख़्वाहिश बहुत सारी मेरी ख़ुदा मुझे तेरी मर्ज़ी नहीं चाहिए कमाना है महनत से पैसा बहुत ज़रा सी भी हानी नहीं चाहिए चुरा ले गए तिफ़्ल का बचपना उन्हें ज़ीस्त ऐसी नहीं चाहिए मुझे मासुमों को बचाना है अब ज़रा भी दलाली नहीं चाहिए मुहब्बत "सफ़र" तेरे बस की नहीं तिरे सा ख़्याली नहीं चाहिए"

 122 122 122 12
मुझे उम्र लंबी नहीं चाहिए
क़ज़ा भी तो जल्दी नहीं चाहिए

हैं ख़्वाहिश बहुत सारी मेरी ख़ुदा
मुझे तेरी मर्ज़ी नहीं चाहिए

कमाना है महनत से पैसा बहुत
ज़रा सी भी हानी नहीं चाहिए

चुरा ले गए तिफ़्ल का बचपना
उन्हें ज़ीस्त ऐसी नहीं चाहिए

मुझे मासुमों को बचाना है अब
ज़रा भी दलाली नहीं चाहिए

मुहब्बत "सफ़र" तेरे बस की नहीं
तिरे सा ख़्याली नहीं चाहिए

122 122 122 12 मुझे उम्र लंबी नहीं चाहिए क़ज़ा भी तो जल्दी नहीं चाहिए हैं ख़्वाहिश बहुत सारी मेरी ख़ुदा मुझे तेरी मर्ज़ी नहीं चाहिए कमाना है महनत से पैसा बहुत ज़रा सी भी हानी नहीं चाहिए चुरा ले गए तिफ़्ल का बचपना उन्हें ज़ीस्त ऐसी नहीं चाहिए मुझे मासुमों को बचाना है अब ज़रा भी दलाली नहीं चाहिए मुहब्बत "सफ़र" तेरे बस की नहीं तिरे सा ख़्याली नहीं चाहिए

ग़ज़ल 26/2022

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ashish malik
ᕼα𝐲Ã卂t uSM𝓐Ⓝ

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