मेरी प्यारी सासु मां...
एक मां जिसने पति खोकर संपत्ति खोकर बड़े संघर्ष से ना घर परिवार बच्चों को संभाला.. लेकिन एक सांस को खुश कर पाना मेरे यानि एक बहूं के बस की बात नहीं हो पाती हमेशा ! दिन में चार बार वो फुलाती हैं अगर मैं उन्हें घर में छोड़कर घर के बाहर भी खड़ी हुई तो... अपने दोस्तों से बातें कर रही हूं तो... गलती से कहीं चली गई मैं घर में छोड़कर तो...
बार-बार मानती हूं कई बार छोड़ कर देता हूं गुस्से आता है तो खामोशी से चुप रहना और नजरअंदाज करना बेहतर समझती हूं। ज्यादा दर्द दुखी बेचारी सी नजर आती है सर पर हाथ रख कर और जमीन को देखती हुई बैठी रहती हैं।
शायद दुनिया अकेला कभी छोड़ना होता है घर में। लेकर जाओ तो भी खुश नहीं रहती .. क्योंकि वो खुश हैं ये सोच कर कहीं हम ना खुश हो जाए।
कई बार उनकी जगह खुद को ❤️रखकर सोचती हूं और अपने आप को समझ लेती हूं।
शायद यही जिम्मेदारी और ज़िन्दगी की परिभाषा है।😊