एक तू ही तो था मेरा और अब तू भी नहीं
कब से तन्हा हूँ मेरा तेरे सिवा कोई नहीं
आख़िरी पहल गया था ले के उसके दर पे मैं
फिर भी उसने मुझसे बस यही कहा अभी नहीं
प्यार में तो वो हज़ारों क़समें खाया करती थी
वो भी अपनी खाती और कहती आप की नहीं
छोड़ना ही था तो क्यों मिली थी बस ये सोच कर
दिल में जो लगी थी आग वो अभी बुझी नहीं
बात तो करो मगर ज़रा सा देख भाल कर
वो जवाब देने में कभी भी चूकती नहीं
मेरे वंश में बची ये आख़िरी निशानी है
घर है ये मेरे लिए ये कोई झोपड़ी नहीं
©vikas shah
vikas shah
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