एक तू ही तो था मेरा और अब तू भी नहीं कब से तन्हा ह | हिंदी शायरी

"एक तू ही तो था मेरा और अब तू भी नहीं कब से तन्हा हूँ मेरा तेरे सिवा कोई नहीं आख़िरी पहल गया था ले के उसके दर पे मैं फिर भी उसने मुझसे बस यही कहा अभी नहीं प्यार में तो वो हज़ारों क़समें खाया करती थी वो भी अपनी खाती और कहती आप की नहीं छोड़ना ही था तो क्यों मिली थी बस ये सोच कर दिल में जो लगी थी आग वो अभी बुझी नहीं बात तो करो मगर ज़रा सा देख भाल कर वो जवाब देने में कभी भी चूकती नहीं मेरे वंश में बची ये आख़िरी निशानी है घर है ये मेरे लिए ये कोई झोपड़ी नहीं ©vikas shah"

 एक तू ही तो था मेरा और अब तू भी नहीं
कब से तन्हा हूँ मेरा तेरे सिवा कोई नहीं

आख़िरी पहल गया था ले के उसके दर पे मैं
फिर भी उसने मुझसे बस यही कहा अभी नहीं

प्यार में तो वो हज़ारों क़समें खाया करती थी
वो भी अपनी खाती और कहती आप की नहीं

छोड़ना ही था तो क्यों मिली थी बस ये सोच कर
दिल में जो लगी थी आग वो अभी बुझी नहीं

बात तो करो मगर ज़रा सा देख भाल कर
वो जवाब देने में कभी भी चूकती नहीं

मेरे वंश में बची ये आख़िरी निशानी है
घर है ये मेरे लिए ये कोई झोपड़ी नहीं

©vikas shah

एक तू ही तो था मेरा और अब तू भी नहीं कब से तन्हा हूँ मेरा तेरे सिवा कोई नहीं आख़िरी पहल गया था ले के उसके दर पे मैं फिर भी उसने मुझसे बस यही कहा अभी नहीं प्यार में तो वो हज़ारों क़समें खाया करती थी वो भी अपनी खाती और कहती आप की नहीं छोड़ना ही था तो क्यों मिली थी बस ये सोच कर दिल में जो लगी थी आग वो अभी बुझी नहीं बात तो करो मगर ज़रा सा देख भाल कर वो जवाब देने में कभी भी चूकती नहीं मेरे वंश में बची ये आख़िरी निशानी है घर है ये मेरे लिए ये कोई झोपड़ी नहीं ©vikas shah

vikas shah

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