जां पर बन आयी 'अज़ाब-ए-आफ़त ना हुई होती , काश होता क | हिंदी शायरी Video

"जां पर बन आयी 'अज़ाब-ए-आफ़त ना हुई होती , काश होता कभी हमको , ये मोहब्बत ना हुई होती ,, आशिक़ी से हाथ छुड़ा के , भागता फिरता क्या मैं गर , दिल निकाल , कर पेश उसे ये चाहत ना हुई होती ,, कम देता तो बेईमानी ' ज़्यादा अदायगी में हाल-ए-तंग , इश्क़ में होता सब ' पर ये हिसाबत ना हुई होती ,, मोहतरम से बा आला बन आये तो कैसी नुमाइशें , नज़र-ए-नुमाइंदगी में ऐसी ये मुनासिबत ना हुई होती ,, हमको ला के बाज़ार में ' खड़ा कर बेच ही दिया जायें , अब दाम हमीं तय कर लें ' ये निलामत ना हुई होती ,, वो आंख ज़रा नम न हुई, सिफ़र को रखो अश्कों से परे , उसकी नज़र को बा रहम ' ये रियायत ना हुई होती ,, ©gaurav nirgure "

जां पर बन आयी 'अज़ाब-ए-आफ़त ना हुई होती , काश होता कभी हमको , ये मोहब्बत ना हुई होती ,, आशिक़ी से हाथ छुड़ा के , भागता फिरता क्या मैं गर , दिल निकाल , कर पेश उसे ये चाहत ना हुई होती ,, कम देता तो बेईमानी ' ज़्यादा अदायगी में हाल-ए-तंग , इश्क़ में होता सब ' पर ये हिसाबत ना हुई होती ,, मोहतरम से बा आला बन आये तो कैसी नुमाइशें , नज़र-ए-नुमाइंदगी में ऐसी ये मुनासिबत ना हुई होती ,, हमको ला के बाज़ार में ' खड़ा कर बेच ही दिया जायें , अब दाम हमीं तय कर लें ' ये निलामत ना हुई होती ,, वो आंख ज़रा नम न हुई, सिफ़र को रखो अश्कों से परे , उसकी नज़र को बा रहम ' ये रियायत ना हुई होती ,, ©gaurav nirgure

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