gaurav nirgure

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#शायरी  बा वक़्त देख लीजे ये मिरी शराफ़त है ,
बाद इस के फिर आफ़त ही आफ़त है ,,

©gaurav nirgure

शेर

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#शायरी #अंदाज़

#अंदाज़-ए-सिफ़र

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#शायरी #chai  जाना कहाँ नहीं है पता तो तुम मुझे  आवारा जानो ,
ऐसा जीना भी है अदा तो तुम मुझे बंजारा जानो ,,

मुझको गर उंगली पकड़ के कहीं ले जा सको तो चलो ,
खींचोगे गर गिरेबां से तो फ़लक से टूटा  तारा जानो ,,

अंजाना है मेरे लिये तेरे शहर की गलियों का रास्ता , 
कहीं भटकता मिल भी गया तो गुमशुदगी का मारा जानो ,,

पहली मर्तबा ही हुआ ऐसा की दुनियां से पड़ा मेरा वास्ता ,
इससे पहले कभी भी यहाँ न पैदा हुआ  न मरा जानो ,,

मुसाफ़त में मेरी मंजिले मरहले मुक़ाम आये भी ऐसे ,
कहीं थम लेता पर न रुके तो सिफ़र ख़ुद भला-बुरा जानो ,

©gaurav nirgure

#chai

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बेगानों से ज़ियादा अपना लगता है , धत्त इश्क़ कितना सुहाना लगता है ,, रंग सारे धो कर उतार दिये इस ने , इक गुलाबी ही रंग रुहाना लगता है ,, तेरे नैन नशीले देख बहक गया हूँ , चिंगारी छुटे तो तोपखाना लगता है ,, एक जाम अगर आँखो से पी जाऊ , ऐसा पी गया जैसे मैखाना लगता है ,, लिए फिरता है जेब में दिल अज़ीज़, अब कहीं "सिफ़र" सयाना लगता है,, ©gaurav nirgure

#शायरी #Shajar  बेगानों से ज़ियादा अपना लगता है ,
धत्त इश्क़ कितना सुहाना लगता है ,,

रंग सारे धो कर उतार दिये इस ने ,
इक गुलाबी ही रंग रुहाना लगता है ,,

तेरे नैन नशीले देख बहक गया हूँ ,
 चिंगारी छुटे तो तोपखाना लगता है ,,

एक जाम अगर आँखो से पी जाऊ ,
ऐसा पी गया जैसे मैखाना लगता है ,,

लिए फिरता है जेब में दिल अज़ीज़,
अब कहीं "सिफ़र" सयाना लगता है,,

©gaurav nirgure

#Shajar

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#शायरी  जां पर बन आयी 'अज़ाब-ए-आफ़त ना हुई होती ,
काश होता कभी हमको , ये मोहब्बत ना हुई होती ,,

आशिक़ी से हाथ छुड़ा के , भागता फिरता क्या मैं गर ,
दिल निकाल , कर पेश उसे ये चाहत ना हुई होती ,,

कम देता तो बेईमानी ' ज़्यादा अदायगी में  हाल-ए-तंग ,
इश्क़ में होता सब ' पर ये हिसाबत ना हुई होती ,,

मोहतरम से बा आला बन आये तो कैसी नुमाइशें ,
नज़र-ए-नुमाइंदगी में ऐसी ये मुनासिबत ना हुई होती ,,

हमको ला के बाज़ार में ' खड़ा कर बेच ही दिया जायें ,
अब दाम हमीं तय कर लें ' ये निलामत ना हुई होती ,,

वो आंख ज़रा नम न हुई, सिफ़र को रखो अश्कों से परे ,
उसकी नज़र को बा रहम ' ये रियायत ना हुई होती ,,

©gaurav nirgure

जां पर बन आयी 'अज़ाब-ए-आफ़त ना हुई होती , काश होता कभी हमको , ये मोहब्बत ना हुई होती ,, आशिक़ी से हाथ छुड़ा के , भागता फिरता क्या मैं गर , दिल निकाल , कर पेश उसे ये चाहत ना हुई होती ,, कम देता तो बेईमानी ' ज़्यादा अदायगी में हाल-ए-तंग , इश्क़ में होता सब ' पर ये हिसाबत ना हुई होती ,, मोहतरम से बा आला बन आये तो कैसी नुमाइशें , नज़र-ए-नुमाइंदगी में ऐसी ये मुनासिबत ना हुई होती ,, हमको ला के बाज़ार में ' खड़ा कर बेच ही दिया जायें , अब दाम हमीं तय कर लें ' ये निलामत ना हुई होती ,, वो आंख ज़रा नम न हुई, सिफ़र को रखो अश्कों से परे , उसकी नज़र को बा रहम ' ये रियायत ना हुई होती ,, ©gaurav nirgure

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आज दिल उसका हमको देख दुःखता होगा , बाबा साहेब का मन दलित से पूछता होगा , शोषण के दलदल से तुम्हें बाहर किया और तू भजन गाता शंख फूंखता है ..? लूट लेते धर्म रक्षक मर्यादा जब बहनों की , सर मुंड के आदमियों को गधे चढ़ाया था , देवालय अपवित्र के प्रचंड दंड के भोगी तू क्यों माथा झुकाता है तिलक लगता है ..? बाबा साहेब का मन दलित से पूछता होगा , शिक्षा का अधिकार दिलवाया किसलिये , पढ़ लिख के अधिकारी बने इसलिये , और बन बैठा जब साहब बन के अगर , क्यों फिर तू अपनी जात छिपाता है ..? बाबा साहेब का मन दलित से पूछता होगा , अब भी वक़्त है अगर सम्हल जाओगे , नहीं तो फिर से शोषित किये जाओगे , एक बार फिर तुम अछूत कहलाओगे , क्या इतना सा समझ नहीं आता है ..? बाबा साहेब का मन दलित से पूछता होगा , जात-नीच जात का गंदा पाखंड ये , कोई देवता तुम्हें बचाने नहीं आयेगा , भगवा तो फिर से लहरायेगा , तुम्हारे हाथों में तो झाड़ू ही आएगा , क्या यहीं तुमको भाता हैं ..? बाबा साहेब का मन दलित से पूछता होगा , ©gaurav nirgure

#Quotes #Rose  आज दिल उसका हमको देख दुःखता होगा ,
बाबा साहेब का मन दलित से पूछता होगा ,
शोषण के दलदल से तुम्हें बाहर किया 
और तू भजन गाता शंख फूंखता है ..?

लूट लेते धर्म रक्षक मर्यादा जब बहनों की ,
सर मुंड के आदमियों को गधे चढ़ाया था ,
देवालय अपवित्र के प्रचंड दंड के भोगी
तू क्यों माथा झुकाता है तिलक लगता है ..?
बाबा साहेब का मन दलित से पूछता होगा ,

शिक्षा का अधिकार दिलवाया किसलिये ,
पढ़ लिख के अधिकारी बने इसलिये ,
और बन बैठा जब साहब बन के अगर ,
क्यों फिर तू अपनी जात छिपाता है ..?
बाबा साहेब का मन दलित से पूछता होगा ,

अब भी वक़्त है अगर सम्हल जाओगे ,
नहीं तो फिर से शोषित किये जाओगे ,
एक बार फिर तुम अछूत कहलाओगे ,
क्या इतना सा समझ नहीं आता है ..?
बाबा साहेब का मन दलित से पूछता होगा ,

जात-नीच जात का गंदा पाखंड ये ,
कोई देवता तुम्हें बचाने नहीं आयेगा ,
भगवा तो फिर से लहरायेगा ,
तुम्हारे हाथों में तो झाड़ू ही आएगा ,
क्या यहीं तुमको भाता हैं ..?
बाबा साहेब का मन दलित से पूछता होगा  ,

©gaurav nirgure

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