बेगानों से ज़ियादा अपना लगता है , धत्त इश्क़ कितना स | हिंदी शायरी

"बेगानों से ज़ियादा अपना लगता है , धत्त इश्क़ कितना सुहाना लगता है ,, रंग सारे धो कर उतार दिये इस ने , इक गुलाबी ही रंग रुहाना लगता है ,, तेरे नैन नशीले देख बहक गया हूँ , चिंगारी छुटे तो तोपखाना लगता है ,, एक जाम अगर आँखो से पी जाऊ , ऐसा पी गया जैसे मैखाना लगता है ,, लिए फिरता है जेब में दिल अज़ीज़, अब कहीं "सिफ़र" सयाना लगता है,, ©gaurav nirgure"

 बेगानों से ज़ियादा अपना लगता है ,
धत्त इश्क़ कितना सुहाना लगता है ,,

रंग सारे धो कर उतार दिये इस ने ,
इक गुलाबी ही रंग रुहाना लगता है ,,

तेरे नैन नशीले देख बहक गया हूँ ,
 चिंगारी छुटे तो तोपखाना लगता है ,,

एक जाम अगर आँखो से पी जाऊ ,
ऐसा पी गया जैसे मैखाना लगता है ,,

लिए फिरता है जेब में दिल अज़ीज़,
अब कहीं "सिफ़र" सयाना लगता है,,

©gaurav nirgure

बेगानों से ज़ियादा अपना लगता है , धत्त इश्क़ कितना सुहाना लगता है ,, रंग सारे धो कर उतार दिये इस ने , इक गुलाबी ही रंग रुहाना लगता है ,, तेरे नैन नशीले देख बहक गया हूँ , चिंगारी छुटे तो तोपखाना लगता है ,, एक जाम अगर आँखो से पी जाऊ , ऐसा पी गया जैसे मैखाना लगता है ,, लिए फिरता है जेब में दिल अज़ीज़, अब कहीं "सिफ़र" सयाना लगता है,, ©gaurav nirgure

#Shajar

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