जाना कहाँ नहीं है पता तो तुम मुझे आवारा जानो ,
ऐसा जीना भी है अदा तो तुम मुझे बंजारा जानो ,,
मुझको गर उंगली पकड़ के कहीं ले जा सको तो चलो ,
खींचोगे गर गिरेबां से तो फ़लक से टूटा तारा जानो ,,
अंजाना है मेरे लिये तेरे शहर की गलियों का रास्ता ,
कहीं भटकता मिल भी गया तो गुमशुदगी का मारा जानो ,,
पहली मर्तबा ही हुआ ऐसा की दुनियां से पड़ा मेरा वास्ता ,
इससे पहले कभी भी यहाँ न पैदा हुआ न मरा जानो ,,
मुसाफ़त में मेरी मंजिले मरहले मुक़ाम आये भी ऐसे ,
कहीं थम लेता पर न रुके तो सिफ़र ख़ुद भला-बुरा जानो ,
©gaurav nirgure
#chai