कितनी बातें कहने को थीं, कितनी बातें व्यर्थ कहीं, | हिंदी कविता

"कितनी बातें कहने को थीं, कितनी बातें व्यर्थ कहीं, जब अतीत के शब्द टटोले, गङबङ खाता, ग़लत बही। मन भर बातें मन में रखीं, हल्की-फुल्की बोल गए, भाव-विभोर, भयातुर, मुख क्या ग़लत समय पर खोल गए ? शब्द बाण निष्प्राण, लक्ष्य संधान, ध्यान से हुआ नहीं । जब अतीत के शब्द टटोले, गङबङ खाता, ग़लत बही। अनुभव में थे पके शब्द, जो युवा कर्ण को कटु लगे, ममता से थे भरे शब्द, जो अहंकार में लघु लगे। क्रोधाग्नि में जली नसीहत, चिड़िया चुगकर खेत गयी। जब अतीत के शब्द टटोले, गङबङ खाता, ग़लत बही। समय नहीं रुकता है रोके, राजा, रंक, प्रसन्न, उदास, नहीं लौट पाते पल 'रूपक' रह जाती बस आधी प्यास। भावी क्षण की छांछ फूंकते, विगत क्षणों की टीस सही। जब अतीत के शब्द टटोले, गङबङ खाता, ग़लत बही। FB: @writerrupak writerrupak@gmail.com ©Rupesh P"

 कितनी बातें कहने को थीं,
कितनी बातें व्यर्थ कहीं,
जब अतीत के शब्द टटोले,
गङबङ खाता, ग़लत बही।

मन भर बातें मन में रखीं,
हल्की-फुल्की बोल गए,
भाव-विभोर, भयातुर, 
मुख क्या ग़लत समय पर खोल गए ?
शब्द बाण निष्प्राण, लक्ष्य संधान,
ध्यान से हुआ नहीं ।
जब अतीत के शब्द टटोले,
गङबङ खाता, ग़लत बही।

अनुभव में थे पके शब्द,
जो युवा कर्ण को कटु लगे,
ममता से थे भरे शब्द,
जो अहंकार में लघु लगे।
क्रोधाग्नि में जली नसीहत,
चिड़िया चुगकर खेत गयी।
जब अतीत के शब्द टटोले,
गङबङ खाता, ग़लत बही।

समय नहीं रुकता है रोके,
राजा, रंक, प्रसन्न, उदास,
नहीं लौट पाते पल 'रूपक'
रह जाती बस आधी प्यास।
भावी क्षण की छांछ फूंकते,
विगत क्षणों की टीस सही।
जब अतीत के शब्द टटोले,
गङबङ खाता, ग़लत बही।

FB: @writerrupak
writerrupak@gmail.com

©Rupesh P

कितनी बातें कहने को थीं, कितनी बातें व्यर्थ कहीं, जब अतीत के शब्द टटोले, गङबङ खाता, ग़लत बही। मन भर बातें मन में रखीं, हल्की-फुल्की बोल गए, भाव-विभोर, भयातुर, मुख क्या ग़लत समय पर खोल गए ? शब्द बाण निष्प्राण, लक्ष्य संधान, ध्यान से हुआ नहीं । जब अतीत के शब्द टटोले, गङबङ खाता, ग़लत बही। अनुभव में थे पके शब्द, जो युवा कर्ण को कटु लगे, ममता से थे भरे शब्द, जो अहंकार में लघु लगे। क्रोधाग्नि में जली नसीहत, चिड़िया चुगकर खेत गयी। जब अतीत के शब्द टटोले, गङबङ खाता, ग़लत बही। समय नहीं रुकता है रोके, राजा, रंक, प्रसन्न, उदास, नहीं लौट पाते पल 'रूपक' रह जाती बस आधी प्यास। भावी क्षण की छांछ फूंकते, विगत क्षणों की टीस सही। जब अतीत के शब्द टटोले, गङबङ खाता, ग़लत बही। FB: @writerrupak writerrupak@gmail.com ©Rupesh P

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