Rupesh P

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डेढ़ सयाने कहीं सफर में आते-जाते, अनजाने जज़्बात जगाते, बिना बात की बात बनाते, मिल जाते हैं डेढ़ सयाने । डेढ़ सयाने बतलाते हैं, हमको क्या-क्या ज्ञात नहीं है, क्या करने की क़ुव्वत अपनी, और किसकी औकात नहीं है। सब्ज़ बाग़ सपनों के सुंदर, दिखलाते है डेढ़ सयाने। बिना बात की बात बनाते, मिल जाते हैं डेढ़ सयाने । इनने नाप रखी है पृथ्वी, अपनी वृहद डेढ़ टंगड़ी से, और सारा आकाश उठा रखा है एक छोटी उंगली से। दुविधा ग्रसित, चकित चिंतित को और छकाते डेढ़ सयाने। बिना बात की बात बनाते, मिल जाते हैं डेढ़ सयाने । जब तुमको हर बात पता है, फिर क्यों नहीं शिखर पर जाते? क्यों बैठे हो मार्ग रोककर, पथिकों के रोड़े अटकाते? सबकी सही राह और मंज़िल, 'रूपक' रुक मत बनो सयाने। बिना बात की बात बनाते, मिल जाते हैं डेढ़ सयाने रूपेश पाण्डेय 'रूपक' (facebook: @writerrupak) ©Rupesh P

#कविता #jharokha  डेढ़ सयाने

कहीं सफर में आते-जाते,
अनजाने जज़्बात जगाते,
बिना बात की बात बनाते,
मिल जाते हैं डेढ़ सयाने ।

डेढ़ सयाने बतलाते हैं,
हमको क्या-क्या ज्ञात नहीं है,
क्या करने की क़ुव्वत अपनी,
और किसकी औकात नहीं है।
सब्ज़ बाग़ सपनों के सुंदर,
दिखलाते है  डेढ़ सयाने।
बिना बात की बात बनाते,
मिल जाते हैं डेढ़ सयाने ।

इनने नाप रखी है पृथ्वी,
अपनी वृहद डेढ़ टंगड़ी से,
और सारा आकाश
उठा रखा है एक छोटी उंगली से।
दुविधा ग्रसित, चकित चिंतित को
और छकाते डेढ़ सयाने।
बिना बात की बात बनाते,
मिल जाते हैं डेढ़ सयाने ।

जब तुमको हर बात पता है,
फिर क्यों नहीं शिखर पर जाते?
क्यों बैठे हो मार्ग रोककर,
पथिकों के रोड़े अटकाते?
सबकी सही राह और मंज़िल,
'रूपक' रुक मत बनो सयाने।
बिना बात की बात बनाते,
मिल जाते हैं डेढ़ सयाने
रूपेश पाण्डेय 'रूपक'
(facebook: @writerrupak)

©Rupesh P

#jharokha

10 Love

कितनी बातें कहने को थीं, कितनी बातें व्यर्थ कहीं, जब अतीत के शब्द टटोले, गङबङ खाता, ग़लत बही। मन भर बातें मन में रखीं, हल्की-फुल्की बोल गए, भाव-विभोर, भयातुर, मुख क्या ग़लत समय पर खोल गए ? शब्द बाण निष्प्राण, लक्ष्य संधान, ध्यान से हुआ नहीं । जब अतीत के शब्द टटोले, गङबङ खाता, ग़लत बही। अनुभव में थे पके शब्द, जो युवा कर्ण को कटु लगे, ममता से थे भरे शब्द, जो अहंकार में लघु लगे। क्रोधाग्नि में जली नसीहत, चिड़िया चुगकर खेत गयी। जब अतीत के शब्द टटोले, गङबङ खाता, ग़लत बही। समय नहीं रुकता है रोके, राजा, रंक, प्रसन्न, उदास, नहीं लौट पाते पल 'रूपक' रह जाती बस आधी प्यास। भावी क्षण की छांछ फूंकते, विगत क्षणों की टीस सही। जब अतीत के शब्द टटोले, गङबङ खाता, ग़लत बही। FB: @writerrupak writerrupak@gmail.com ©Rupesh P

#कविता #Butterfly  कितनी बातें कहने को थीं,
कितनी बातें व्यर्थ कहीं,
जब अतीत के शब्द टटोले,
गङबङ खाता, ग़लत बही।

मन भर बातें मन में रखीं,
हल्की-फुल्की बोल गए,
भाव-विभोर, भयातुर, 
मुख क्या ग़लत समय पर खोल गए ?
शब्द बाण निष्प्राण, लक्ष्य संधान,
ध्यान से हुआ नहीं ।
जब अतीत के शब्द टटोले,
गङबङ खाता, ग़लत बही।

अनुभव में थे पके शब्द,
जो युवा कर्ण को कटु लगे,
ममता से थे भरे शब्द,
जो अहंकार में लघु लगे।
क्रोधाग्नि में जली नसीहत,
चिड़िया चुगकर खेत गयी।
जब अतीत के शब्द टटोले,
गङबङ खाता, ग़लत बही।

समय नहीं रुकता है रोके,
राजा, रंक, प्रसन्न, उदास,
नहीं लौट पाते पल 'रूपक'
रह जाती बस आधी प्यास।
भावी क्षण की छांछ फूंकते,
विगत क्षणों की टीस सही।
जब अतीत के शब्द टटोले,
गङबङ खाता, ग़लत बही।

FB: @writerrupak
writerrupak@gmail.com

©Rupesh P

#Butterfly

8 Love

थोड़ा हँसना, थोड़ा रोना, हँसकर लोट-पोट होना, 'अच्छा' कहना, ताली देना, गुस्सा होना, गाली देना; अब तो हर बात बताने को, बंधन-रहित emoji है। ऐसे में उनको प्रणाम (🙏🏻), जो हिन्दी के खोजी हैं। अब शब्द-व्याकरण गौण हुए, बस बात समझकर LOL हुआ, हिन्दी में 'भ्राता' कहने वाला, BRO! वालों से troll हुआ, अब परसाई के व्यंग्य नहीं, हर शब्द के अर्थ असीम, अब हैं चुभते विष-बुझे बाण, कहलाते हैं जो meme; बॉलीवुड का हिन्दीभाषी, धोती धारी, सर चोटी है, ऐसे में उनको प्रणाम (🙏🏻), जो हिन्दी के खोजी हैं। माना कि हिन्दी Cool नहीं, और न ही उतनी HOT लगे, Literature तो LIT लगता है, साहित्य गाँव की हाट लगे; अब हिन्दी के विद्वानों की, स्थितियाँ विस्मयकारक हैं, कुछ की ह्रदय विदारक है, और कुछ स्टार-प्रचारक हैं; है नमन नवीन लेखकों को, हिन्दी 2.0 सोची है। ऐसे में उनको प्रणाम (🙏🏻), जो हिन्दी के खोजी हैं। जन से जुड़ने की आशा में, तत्सम के तद्भव रूप बने, फिर हर भाषा से शब्द उठा, हिन्दी के सरल स्वरूप बने, अब जिसको हिंदी कहते हैं, वो हिन्दी जैसी लगती है, उतनी ही जितनी फ्रेंच-फल्लियां, भिंडी जैसी लगती है। अटका है पंत, निराला में, 'रूपक' थोड़ा संकोची है। ऐसे में उनको प्रणाम (🙏🏻), जो हिन्दी के खोजी हैं। facebook:@writerrupak email:writerrupak@gmail.com ©Rupesh P

#हिंदीदिवस #हिंदी #HindiDiwas2021 #hindi_poetry #hindikavita  थोड़ा हँसना, थोड़ा रोना,
हँसकर लोट-पोट होना,
'अच्छा' कहना, ताली देना,
गुस्सा होना, गाली देना;
अब तो हर बात बताने को,
बंधन-रहित emoji है।
ऐसे में उनको प्रणाम (🙏🏻),
जो हिन्दी के खोजी हैं।

अब शब्द-व्याकरण गौण हुए,
बस बात समझकर LOL हुआ,
हिन्दी में 'भ्राता' कहने वाला,
BRO! वालों से troll हुआ,
अब परसाई के व्यंग्य नहीं,
हर शब्द के अर्थ असीम,
अब हैं चुभते विष-बुझे बाण,
कहलाते हैं जो meme;

बॉलीवुड का हिन्दीभाषी,
धोती धारी, सर चोटी है,
ऐसे में उनको प्रणाम (🙏🏻),
जो हिन्दी के खोजी हैं।

माना कि हिन्दी Cool नहीं,
और न ही उतनी HOT लगे,
Literature तो LIT लगता है,
साहित्य गाँव की हाट लगे;
अब हिन्दी के विद्वानों की,
स्थितियाँ विस्मयकारक हैं,
कुछ की ह्रदय विदारक है,
और कुछ स्टार-प्रचारक हैं;
है नमन नवीन लेखकों को,
हिन्दी 2.0 सोची है।
ऐसे में उनको प्रणाम (🙏🏻),
जो हिन्दी के खोजी हैं।

जन से जुड़ने की आशा में,
तत्सम के तद्भव रूप बने,
फिर हर भाषा से शब्द उठा,
हिन्दी के सरल स्वरूप बने,
अब जिसको हिंदी कहते हैं,
वो हिन्दी जैसी लगती है,
उतनी ही जितनी फ्रेंच-फल्लियां,
भिंडी जैसी लगती है।
अटका है पंत, निराला में,
'रूपक' थोड़ा संकोची है।
ऐसे में उनको प्रणाम (🙏🏻),
जो हिन्दी के खोजी हैं।
facebook:@writerrupak
email:writerrupak@gmail.com

©Rupesh P

यहां से भाग जाना चाहता हूँ, कोई अच्छा बहाना चाहता हूँ। बड़ी चिपकू हैं ये दुनिया की रस्में, ज़रा पीछा छुड़ाना चाहता हूँ। वो बाग़ीपन तुम्हारे दिल में भी है, मैं जिसको आज़माना चाहता हूँ। लकीरें भी, क़दम भी घिस गए हैं, नया रस्ता बनाना चाहता हूँ। पहाड़ों की तरह पथरा गया हूँ, मैं बादल बनके गाना चाहता हूँ। समय की पटरियों पर रेल-जीवन, बस एक जंज़ीर पाना चाहता हूँ। सभी फ़ितरत यहां आतिश-फ़िशां हैं, मैं जल्दी जाग जाना चाहता हूँ। इन आधी रात के ख्वाबों को 'रूपक' सुबह ख़ुद से छुपाना चाहता हूँ। यहां से भाग जाना चाहता हूँ, कोई अच्छा बहाना चाहता हूँ। ~Rupesh Pandey 'Rupak' facebook:@writerrupak email:writerrupak@gmail.com ©Rupesh P

#poetrycommunity #flyhigh #ghazal #nagma #geet  यहां से भाग जाना चाहता हूँ,
कोई अच्छा बहाना चाहता हूँ।

बड़ी चिपकू हैं ये दुनिया की रस्में,
ज़रा पीछा छुड़ाना चाहता हूँ।

वो बाग़ीपन तुम्हारे दिल में भी है,
मैं जिसको आज़माना चाहता हूँ।
 
लकीरें भी, क़दम भी घिस गए हैं,
नया रस्ता बनाना चाहता हूँ।

पहाड़ों की तरह पथरा गया हूँ,
मैं बादल बनके गाना चाहता हूँ।

समय की पटरियों पर रेल-जीवन,
बस एक जंज़ीर पाना चाहता हूँ।

सभी फ़ितरत यहां आतिश-फ़िशां हैं,
मैं जल्दी जाग जाना चाहता हूँ।

इन आधी रात के ख्वाबों को 'रूपक'
सुबह ख़ुद से छुपाना चाहता हूँ।

यहां से भाग जाना चाहता हूँ,
कोई अच्छा बहाना चाहता हूँ।

~Rupesh Pandey 'Rupak'
facebook:@writerrupak
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©Rupesh P
#जन्माष्टमी #म्यूज़िक #कन्हैया #jaikanhaiyalalki #कृष्ण #janmashtami  🙏 जय कन्हैया लाल की, आप सब को जन्माष्टमी की शुभकामनाएं🙏🏻

बालमुकुंद, मदन, मधुसूदन, पार लगाते नैया, जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया। बिछड़े हुए देवकीनंदन, या बिगड़े लाल यशोदा, रसिया ग्वाल गोपियों के, या गीता ज्ञान पुरोधा, सृष्टि के आदि-अनंत, भवसागर के खेवईया, जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया। स्वयं सजाएं मंच, दिखाएं भाँति-भाँति की लीला, नवरस बरबस खेलें सब, कभी चोटिल कभी चुटीला, भाव करें जब घाव, तो भरते खुद ही मुरली बजैया, जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया। जीवन जिनका सतत प्रेरणा, हर किरदार प्रवीण, नटखट, प्रेमी, राजा, योगी, सब उत्तम सब उत्तीर्ण, काम, क्रोध, न लोभ मोह, सब जन सम भाव दिखैया, जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष हैं, भवसागर के द्वार, कर्म, साधना, भक्ति मार्ग, से होते हैं यह पार 'रूपक' चातक चंद्र प्रभु , मीरा-कण्ठ बसैया, जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया। facebook:@writerrupak email:writerrupak@gmail.com ©Rupesh P

#कविता #jaishrikrishna #janmashtami #DearKanha #Kanhaiya  बालमुकुंद, मदन, मधुसूदन, पार लगाते नैया,
जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया।

बिछड़े हुए देवकीनंदन, या बिगड़े लाल यशोदा,
रसिया ग्वाल गोपियों के, या गीता ज्ञान पुरोधा,
सृष्टि के आदि-अनंत, भवसागर के खेवईया,
जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया।

स्वयं सजाएं मंच, दिखाएं भाँति-भाँति की लीला,
नवरस बरबस खेलें सब, कभी चोटिल कभी चुटीला,
भाव करें जब घाव, तो भरते खुद ही मुरली बजैया,
जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया।

जीवन जिनका सतत प्रेरणा, हर किरदार प्रवीण,
नटखट, प्रेमी, राजा, योगी, सब उत्तम सब उत्तीर्ण,
काम, क्रोध, न लोभ मोह, सब जन सम भाव दिखैया,
जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया।

धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष हैं, भवसागर के द्वार,
कर्म, साधना, भक्ति मार्ग, से होते हैं यह पार
'रूपक' चातक चंद्र प्रभु , मीरा-कण्ठ बसैया, 
जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया।
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