बालमुकुंद, मदन, मधुसूदन, पार लगाते नैया, जिसके मन | मराठी कविता

"बालमुकुंद, मदन, मधुसूदन, पार लगाते नैया, जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया। बिछड़े हुए देवकीनंदन, या बिगड़े लाल यशोदा, रसिया ग्वाल गोपियों के, या गीता ज्ञान पुरोधा, सृष्टि के आदि-अनंत, भवसागर के खेवईया, जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया। स्वयं सजाएं मंच, दिखाएं भाँति-भाँति की लीला, नवरस बरबस खेलें सब, कभी चोटिल कभी चुटीला, भाव करें जब घाव, तो भरते खुद ही मुरली बजैया, जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया। जीवन जिनका सतत प्रेरणा, हर किरदार प्रवीण, नटखट, प्रेमी, राजा, योगी, सब उत्तम सब उत्तीर्ण, काम, क्रोध, न लोभ मोह, सब जन सम भाव दिखैया, जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष हैं, भवसागर के द्वार, कर्म, साधना, भक्ति मार्ग, से होते हैं यह पार 'रूपक' चातक चंद्र प्रभु , मीरा-कण्ठ बसैया, जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया। facebook:@writerrupak email:writerrupak@gmail.com ©Rupesh P"

 बालमुकुंद, मदन, मधुसूदन, पार लगाते नैया,
जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया।

बिछड़े हुए देवकीनंदन, या बिगड़े लाल यशोदा,
रसिया ग्वाल गोपियों के, या गीता ज्ञान पुरोधा,
सृष्टि के आदि-अनंत, भवसागर के खेवईया,
जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया।

स्वयं सजाएं मंच, दिखाएं भाँति-भाँति की लीला,
नवरस बरबस खेलें सब, कभी चोटिल कभी चुटीला,
भाव करें जब घाव, तो भरते खुद ही मुरली बजैया,
जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया।

जीवन जिनका सतत प्रेरणा, हर किरदार प्रवीण,
नटखट, प्रेमी, राजा, योगी, सब उत्तम सब उत्तीर्ण,
काम, क्रोध, न लोभ मोह, सब जन सम भाव दिखैया,
जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया।

धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष हैं, भवसागर के द्वार,
कर्म, साधना, भक्ति मार्ग, से होते हैं यह पार
'रूपक' चातक चंद्र प्रभु , मीरा-कण्ठ बसैया, 
जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया।
facebook:@writerrupak
email:writerrupak@gmail.com

©Rupesh P

बालमुकुंद, मदन, मधुसूदन, पार लगाते नैया, जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया। बिछड़े हुए देवकीनंदन, या बिगड़े लाल यशोदा, रसिया ग्वाल गोपियों के, या गीता ज्ञान पुरोधा, सृष्टि के आदि-अनंत, भवसागर के खेवईया, जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया। स्वयं सजाएं मंच, दिखाएं भाँति-भाँति की लीला, नवरस बरबस खेलें सब, कभी चोटिल कभी चुटीला, भाव करें जब घाव, तो भरते खुद ही मुरली बजैया, जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया। जीवन जिनका सतत प्रेरणा, हर किरदार प्रवीण, नटखट, प्रेमी, राजा, योगी, सब उत्तम सब उत्तीर्ण, काम, क्रोध, न लोभ मोह, सब जन सम भाव दिखैया, जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष हैं, भवसागर के द्वार, कर्म, साधना, भक्ति मार्ग, से होते हैं यह पार 'रूपक' चातक चंद्र प्रभु , मीरा-कण्ठ बसैया, जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया। facebook:@writerrupak email:writerrupak@gmail.com ©Rupesh P

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