तरू पल्लव जड़ फल फूलों अरु शाखाओं पर पुष्पित राम | हिंदी कविता Video

"तरू पल्लव जड़ फल फूलों अरु शाखाओं पर पुष्पित राम। दृश्य नहीं हैं किंतु सृष्टि में कण-कण घट-घट व्यापित राम। राज महल के भोग छोड़ कर मर्यादा को मान दिये। कुल मर्यादा अरु समाज के मूल्यों का वो ज्ञान दिये। विधि लेती है कठिन परीक्षा, नहीं थे इससे वंचित राम। दृश्य नहीं हैं किंतु सृष्टि में कण-कण घट-घट व्यापित राम।। शिव के अप्रतिम भक्त राम तो राम-भक्त भोले शंकर। एक दूजे की शक्ति हैं दोनो रघुनंदन अरु रामेश्वर। रघुकुल भूषण सूर्यवंश मणि सियापति शिव पूजित राम। दृश्य नहीं हैं किंतु सृष्टि में कण-कण घट-घट व्यापित राम ।। साथी धर्म निभाने को वो, शक्ति बाण भी सह लेते। जीत के लंका लंकापति से, राज्य विभिषण को देते। देवों के हैं देव किंतु, हैं सहज सरल अनुशासित राम। दृश्य नहीं हैं किंतु सृष्टि में कण-कण घट-घट व्यापित राम।। सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुगराम के ग्रंथों का सार हैं राम। भाषा भाष्य विभाषा हैं वो परिभाषा के पार हैं राम। किन्तु जगत में समय समय पर किये गए परिभाषित राम। दृश्य नहीं हैं किंतु सृष्टि में कण-कण घट-घट व्यापित राम ।। हे सृष्टा, हे सृष्टि नियंता, तुम ही नियम, नियामक भी। संहारक हो दुष्टों का तुम, तुम ही जगत के पालक भी। सुर नर मुनि के श्रेष्ठ आचरण से सज्जित मर्यादित राम। दृश्य नहीं हैं किंतु सृष्टि में कण-कण घट-घट व्यापित राम।। जन मानस के रोम रोम अरु हिय पर सबके अंकित राम। ©Madhusudan Shrivastava "

तरू पल्लव जड़ फल फूलों अरु शाखाओं पर पुष्पित राम। दृश्य नहीं हैं किंतु सृष्टि में कण-कण घट-घट व्यापित राम। राज महल के भोग छोड़ कर मर्यादा को मान दिये। कुल मर्यादा अरु समाज के मूल्यों का वो ज्ञान दिये। विधि लेती है कठिन परीक्षा, नहीं थे इससे वंचित राम। दृश्य नहीं हैं किंतु सृष्टि में कण-कण घट-घट व्यापित राम।। शिव के अप्रतिम भक्त राम तो राम-भक्त भोले शंकर। एक दूजे की शक्ति हैं दोनो रघुनंदन अरु रामेश्वर। रघुकुल भूषण सूर्यवंश मणि सियापति शिव पूजित राम। दृश्य नहीं हैं किंतु सृष्टि में कण-कण घट-घट व्यापित राम ।। साथी धर्म निभाने को वो, शक्ति बाण भी सह लेते। जीत के लंका लंकापति से, राज्य विभिषण को देते। देवों के हैं देव किंतु, हैं सहज सरल अनुशासित राम। दृश्य नहीं हैं किंतु सृष्टि में कण-कण घट-घट व्यापित राम।। सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुगराम के ग्रंथों का सार हैं राम। भाषा भाष्य विभाषा हैं वो परिभाषा के पार हैं राम। किन्तु जगत में समय समय पर किये गए परिभाषित राम। दृश्य नहीं हैं किंतु सृष्टि में कण-कण घट-घट व्यापित राम ।। हे सृष्टा, हे सृष्टि नियंता, तुम ही नियम, नियामक भी। संहारक हो दुष्टों का तुम, तुम ही जगत के पालक भी। सुर नर मुनि के श्रेष्ठ आचरण से सज्जित मर्यादित राम। दृश्य नहीं हैं किंतु सृष्टि में कण-कण घट-घट व्यापित राम।। जन मानस के रोम रोम अरु हिय पर सबके अंकित राम। ©Madhusudan Shrivastava

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