एक अजीब सी बेचैनी और कुछ अधूरे से ख़्वाब मैं लिखती

"एक अजीब सी बेचैनी और कुछ अधूरे से ख़्वाब मैं लिखती नहीं शायरी बस लिखती हूं कुछ खास अल्फ़ाज़ दुनिया की इस भीड़ में मेरा अकेला सा होना मैंने अक्सर महसूस किया है किसी का मेरा ना होना ना बता सकूँ न जाता सकूँ कुछ ऐसे हैं मेरे जज़्बात झूठी ही सही पर दे देते हैं एक तसल्ली सी हर बार BAJETHA NIKITA....."

 एक अजीब सी बेचैनी और
कुछ अधूरे से ख़्वाब
मैं लिखती नहीं शायरी
बस लिखती हूं कुछ खास अल्फ़ाज़

दुनिया की इस भीड़ में
मेरा अकेला सा होना
मैंने अक्सर महसूस किया है
किसी का मेरा ना होना

ना बता सकूँ न जाता सकूँ
कुछ ऐसे हैं मेरे जज़्बात
झूठी ही सही पर दे देते  हैं
एक तसल्ली सी हर बार

                       BAJETHA  NIKITA.....

एक अजीब सी बेचैनी और कुछ अधूरे से ख़्वाब मैं लिखती नहीं शायरी बस लिखती हूं कुछ खास अल्फ़ाज़ दुनिया की इस भीड़ में मेरा अकेला सा होना मैंने अक्सर महसूस किया है किसी का मेरा ना होना ना बता सकूँ न जाता सकूँ कुछ ऐसे हैं मेरे जज़्बात झूठी ही सही पर दे देते हैं एक तसल्ली सी हर बार BAJETHA NIKITA.....

कुछ खास अल्फ़ाज़........

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