इक अजनबी मुलाक़ात थी वो दो लम्हों की बात थी वो न | हिंदी Shayari

"इक अजनबी मुलाक़ात थी वो दो लम्हों की बात थी वो ना सावन था न बदली थी बिन बादल बरसात थी वो कुछ तुमने कहाँ कुछ हमनें कुछ अनकहे जज़्बात थे वो दिख रहा था मंज़िल का रास्ता कितना हसीन साथ था वो शुरू हुआ सफ़र अरमानों का ज़िंदगी की नई शुरुआत थी वो गुफ़्तगू शायराना थी दोनों की शायर शायरा की मुलाक़ात थी वो ©Rachit Kulshrestha"

 इक अजनबी मुलाक़ात थी वो 
दो लम्हों की बात थी वो 

ना सावन था न बदली थी 
बिन बादल बरसात थी वो 

कुछ तुमने कहाँ कुछ हमनें 
कुछ अनकहे जज़्बात थे वो 

दिख रहा था मंज़िल का रास्ता
कितना हसीन साथ था वो 

शुरू हुआ सफ़र अरमानों का
ज़िंदगी की नई शुरुआत थी वो

गुफ़्तगू शायराना थी दोनों की
शायर शायरा की मुलाक़ात थी वो

©Rachit Kulshrestha

इक अजनबी मुलाक़ात थी वो दो लम्हों की बात थी वो ना सावन था न बदली थी बिन बादल बरसात थी वो कुछ तुमने कहाँ कुछ हमनें कुछ अनकहे जज़्बात थे वो दिख रहा था मंज़िल का रास्ता कितना हसीन साथ था वो शुरू हुआ सफ़र अरमानों का ज़िंदगी की नई शुरुआत थी वो गुफ़्तगू शायराना थी दोनों की शायर शायरा की मुलाक़ात थी वो ©Rachit Kulshrestha

#soulmate

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