कहाँ हो? कैसे हो? दो लफ्ज़ ही काफी है, सुकूं-ए-दि | हिंदी शायरी

"कहाँ हो? कैसे हो? दो लफ्ज़ ही काफी है, सुकूं-ए-दिल के लिए। वर्ना... परवाह किसे कितनी है, ये बख़ूबी समझते हैं हम।। डॉ दीपक कुमार 'दीप' . ©Dr Deepak Kumar Deep"

 कहाँ हो? कैसे हो?
दो लफ्ज़ ही काफी है,
सुकूं-ए-दिल के लिए।
वर्ना...
परवाह किसे कितनी है,
ये बख़ूबी समझते हैं हम।।

डॉ दीपक कुमार 'दीप'





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©Dr Deepak Kumar Deep

कहाँ हो? कैसे हो? दो लफ्ज़ ही काफी है, सुकूं-ए-दिल के लिए। वर्ना... परवाह किसे कितनी है, ये बख़ूबी समझते हैं हम।। डॉ दीपक कुमार 'दीप' . ©Dr Deepak Kumar Deep

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