"हम उस मुकाँ को पाने निकले हैं
धूल-ए-निशाँ को छुपाने निकले हैं
गर्दिश-ए-बादल क्या कर लेंगे गहराकर
हम आशमां-ए-धूप खिलाने निकले हैं
लाज़िम हैं राहें, आशां नहीं अपनी
थकेंगे मगर हम रुकेंगे नहीं पर
हसेँगे जो हारे हुए हैं भी हमपर
हम रेगिस्ताँ में दरिया बहाने निकले हैं"