उठा तूलिका मैं भी कुछ कहूं,
बैरंग ज़िन्दगी में मैं भी कुछ रंग भरूं,
त्योहार रंगों का खड़ा सामने मुस्कुरा रहा है,
इशारों इशारों से बुला रहा है,
चारों तरफ हो अगर काली घटाएं,
समझ नहीं आता पहले कौन सा रंग उठाए,
सफ़ेद रंग से क्या दाग धुल जाएंगे?,
लाल पीले या नीले रंग भी क्या मुस्कुरा पाएंगे?
चेहरे की मुस्कराहट के पीछे उदासी झलक रही है,
दबी भावनाएं भी छलक रही है,
दबी भावनाओं को अब कैसे छुपाएं,
चलो छोड़ो आओ अब होली मनाएं।
©Harvinder Ahuja
#आओ होली खेलें