हवा में पतंग हो। पतंग से हवा हो। ख़ैर अब हमें क्या

"हवा में पतंग हो। पतंग से हवा हो। ख़ैर अब हमें क्या , पतंग बादलों से खेल ,तूफानों से लड़ रहीं । अब ज़िन्दगी पतंग सी कट रही । हाथ में पतंग की डोर हो । डोर से लिपटा मेरा हाथ हो। ख़ैर अब हमे क्या , पतंग थी कट गई , डोर मेरे हाथ में रह गई । ना जाने मेरी पतंग किस अंजान की छत में जा सिमट गई। पतंगबाजी एक शौक हो । शौक से पतंगबाजी हो। ख़ैर अब हमे क्या , पतंग से दोस्ती ना रही । आजाद मेरी पतंग गगन में उड़ रही।"

 हवा में पतंग हो।
पतंग से हवा हो।
ख़ैर अब हमें क्या ,
पतंग बादलों से खेल ,तूफानों से लड़ रहीं ।
अब ज़िन्दगी पतंग सी कट रही ।

हाथ में पतंग की डोर हो ।
डोर से लिपटा मेरा हाथ हो।
ख़ैर अब हमे क्या ,
पतंग थी कट गई , डोर मेरे हाथ में रह गई ।
ना जाने मेरी पतंग किस अंजान की छत में जा सिमट गई।

पतंगबाजी एक शौक हो ।
शौक से पतंगबाजी हो।
ख़ैर अब हमे क्या ,
पतंग से दोस्ती ना रही ।
आजाद मेरी पतंग गगन में उड़ रही।

हवा में पतंग हो। पतंग से हवा हो। ख़ैर अब हमें क्या , पतंग बादलों से खेल ,तूफानों से लड़ रहीं । अब ज़िन्दगी पतंग सी कट रही । हाथ में पतंग की डोर हो । डोर से लिपटा मेरा हाथ हो। ख़ैर अब हमे क्या , पतंग थी कट गई , डोर मेरे हाथ में रह गई । ना जाने मेरी पतंग किस अंजान की छत में जा सिमट गई। पतंगबाजी एक शौक हो । शौक से पतंगबाजी हो। ख़ैर अब हमे क्या , पतंग से दोस्ती ना रही । आजाद मेरी पतंग गगन में उड़ रही।

#poem #life

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