दिखता तो सबकुछ है पर किसी को बताते नहीं हैं
तुम्हारी तरह दुनिया को बेवजह आजमाते नहीं हैं
किस्मत कि नदी दोनो तरफ से गुजरती है ये मालूम है
बिला बात आसमान को सर पर उठाते नहीं हैं
फर्क तो बहुत पड़ता हैं जमाने कि अदावतों का
सबको समझा नहीसकते,तो समझाते नहीं हैं
मेरा वजूद नहीं बना जवाब देने कि खातिर
शायद इसलिए हीं वजूद को झुकाते नहीं हैं
कभी चरागो को भी सूरज का मुकाम मिलेगा
ये फरेब है और फरेब को दिल लगाते नही हैं
हर चालाकियों में वफा कत्ल ए दीद होती है हरदम
ऐसे बियाबां में सपने कोई दिखाते नही हैं
दिखता तो सबकुछ है पर किसी को बताते नहीं हैं
तुम्हारी तरह दुनिया को बेवजह आजमाते नहीं हैं
राजीव
©samandar Speaks
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