मैंने रात भर दूसरों के घर के उजाले देखे हैं पर अपन | हिंदी शायरी

"मैंने रात भर दूसरों के घर के उजाले देखे हैं पर अपने घर उजालों में भी अंधेरा पाया खुशबू तेरी दूर तलक फैली थी लेकिन अपने करीब तेरी खुशबू नहीं रख पाया ज़िंदगी तेरे साथ जीने के मुताबिक़ बहुत कम थी मैं ढूंढता रहा अपनी मंज़िल और कभी पहुँच नहीं पाया ©Richa Dhar"

 मैंने रात भर दूसरों के घर के उजाले देखे हैं
पर अपने घर उजालों में भी अंधेरा पाया

खुशबू तेरी दूर तलक फैली थी लेकिन
अपने करीब तेरी खुशबू नहीं रख पाया

ज़िंदगी तेरे साथ जीने के मुताबिक़ बहुत कम थी
मैं ढूंढता रहा अपनी मंज़िल और कभी पहुँच नहीं पाया

©Richa Dhar

मैंने रात भर दूसरों के घर के उजाले देखे हैं पर अपने घर उजालों में भी अंधेरा पाया खुशबू तेरी दूर तलक फैली थी लेकिन अपने करीब तेरी खुशबू नहीं रख पाया ज़िंदगी तेरे साथ जीने के मुताबिक़ बहुत कम थी मैं ढूंढता रहा अपनी मंज़िल और कभी पहुँच नहीं पाया ©Richa Dhar

मंजिल

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