किसने युद्ध को ताल दिया?🌪️ दो तरफा कोप का ये कैस | हिंदी कविता

"किसने युद्ध को ताल दिया?🌪️ दो तरफा कोप का ये कैसा बिजन रोप हुआ? हरियाली की चादर पे लाल रंग का धूप हुआ, हिरोशिमा की आह को फिर से किसने राग दिया? बोलो अमन की छाव में किसने भय का भान किया? बताओ किसने फिर से युद्ध को ताल दिया? ज्वाला मुखी की राख में भय का कैसा छाव हैं? क्या यह धरती की कोंख से निकली मृत्यु की आह हैं? डगमग करती जीवन की नाव को फिर भय का भान हुआ, शुष्क नैन की चादर पे भीति का श्रृंगार हुआ, टूटी रण की रीढ़ को फिर किसने जान दिया, बोलो फिर किसने युद्ध को ताल दिया। लेखक___ अमित कुमार ✍️ ©AMIT KUMAR KASHYAP"

 किसने युद्ध को ताल दिया?🌪️
 
दो तरफा कोप का ये कैसा बिजन रोप हुआ?
हरियाली की चादर पे लाल रंग का धूप हुआ,
हिरोशिमा की आह को फिर से किसने राग दिया?
बोलो अमन की छाव में किसने भय का भान किया?
बताओ किसने फिर से युद्ध को ताल दिया?

ज्वाला मुखी की राख में भय का कैसा छाव हैं?
क्या यह धरती की कोंख से निकली मृत्यु की आह हैं?
डगमग करती जीवन की नाव को फिर भय का भान हुआ,
शुष्क नैन की चादर पे भीति का श्रृंगार हुआ,
टूटी रण की रीढ़ को फिर किसने जान दिया,
बोलो फिर किसने युद्ध को ताल दिया।

लेखक___ अमित कुमार ✍️

©AMIT KUMAR KASHYAP

किसने युद्ध को ताल दिया?🌪️ दो तरफा कोप का ये कैसा बिजन रोप हुआ? हरियाली की चादर पे लाल रंग का धूप हुआ, हिरोशिमा की आह को फिर से किसने राग दिया? बोलो अमन की छाव में किसने भय का भान किया? बताओ किसने फिर से युद्ध को ताल दिया? ज्वाला मुखी की राख में भय का कैसा छाव हैं? क्या यह धरती की कोंख से निकली मृत्यु की आह हैं? डगमग करती जीवन की नाव को फिर भय का भान हुआ, शुष्क नैन की चादर पे भीति का श्रृंगार हुआ, टूटी रण की रीढ़ को फिर किसने जान दिया, बोलो फिर किसने युद्ध को ताल दिया। लेखक___ अमित कुमार ✍️ ©AMIT KUMAR KASHYAP

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