शहर नया है, अंजान लगता है
अटका कहीं पर, इसका ध्यान लगता है
पूछा मैंने– ये घुटन कैसी है बोलो बेटा
बंद है जैसे इसकी ज़बान लगता है।
देखो ज़रा–ये तन बेजान लगता है
जैसे निकल रही.. जान लगता है
नही पता की कट रहा या घट रहा ये पल
हुआ है मानो कोई घमासान लगता है।
गुम है कहीं इसकी पहचान लगता है
जाने की जल्दी है , मेहमान लगता है
घबराया है शायद, बेचैन भी है...!
या खुदा संभाल इसे
ये लड़का मुझे परेशान लगता है।
©Suraj Agrawal
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