" माॅं "
माॅं का रक्त रगों में बहता
उसे भुलाना मुश्किल है।
रोम-रोम में कर्ज दूध का
उसे चुकाना मुश्किल है ।।
देती जन्म पालती हमको
अमृत हमें पिलाती माॅं।
हो गीले में तुरंत उठा ,खुद
गीले में सो जाती माॅं।।
क्या-क्या पीड़ा माॅं सहती है
रखती मगर हिसाब नहीं ।
माॅं से बढ़कर इस दुनिया में
होती कोई किताब नहीं। ।
सृष्टि व जग की सीमाऍं
माॅं ममता का छोर नहीं ।
माॅं गोद ऑंचल की छाया
मिलती कहीं और नहीं ।।
प्यार की थपकी लोरी गा के
माॅं सुलाती बाहों में ।
माॅं का हृदय प्यार का तो
सागर झलके नेह निगाहों में ।।
©Shivkumar
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" माॅं "
माॅं का रक्त रगों में बहता
उसे भुलाना मुश्किल है।