यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं।
लोचनाभ्याम विहीनस्य, दर्पण:किं करिष्यति।।
जिसकी स्वयं की बुद्धि नहीं है, शास्त्र उसका करेंगे क्या या शास्त्र उसे कैसे लाभ पहुँचायेंगे उसी तरह से जिस तरह से चक्षु-विहीन व्यक्ति के लिए दर्पण किसी काम का नहीं होता है।
©The Urban Rishi
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