The Urban Rishi

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कविताएं यहां पढ़ें- theurbanrishi.in उतर भवर में ना पछताओ, अपनी नौका आप चलाओ...

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कुछ अधूरे सपनें, कुछ अधूरी बातें, कुछ अनकहे क़िस्से, कुछ अनसुनी आहें, कुछ अधूरी मोहब्बत, कुछ अधूरे रास्तें, कुछ अधूरी मंजिलें, और ये पूरी ज़िंदगी, इक अधूरी दास्तान.... ©The Urban Rishi

 कुछ अधूरे सपनें,
कुछ अधूरी बातें,
कुछ अनकहे क़िस्से,
कुछ अनसुनी आहें,
कुछ अधूरी मोहब्बत,
कुछ अधूरे रास्तें,
कुछ अधूरी मंजिलें,
और ये पूरी ज़िंदगी,
इक अधूरी दास्तान....

©The Urban Rishi

#Life

10 Love

भविष्य हमेशा इनसिक्योरिटी और डर पैदा करता है इसलिए भविष्य के बारे में सोचना छोड़कर वर्तमान के बारे में सोचो और करो.. जीवन जो कुछ भी है अभी है। ©The Urban Rishi

#Marriage  भविष्य हमेशा इनसिक्योरिटी और डर पैदा करता है इसलिए भविष्य के बारे में सोचना छोड़कर वर्तमान के बारे में सोचो और करो.. जीवन जो कुछ भी है अभी है।

©The Urban Rishi

#Marriage

11 Love

#ज़िन्दगी #कविता #सपने  हाँ मैने हत्या की है,
एक कवि की,
हम सबने की है हत्याएं,
किसी लेखक, खिलाड़ी, अभिनेता की,
अपने अंदर जाओ और पूछो,
खुद से,
क्या तुम वही हो जो बनना चाहते थे,
या मार डाला तुमने,
अपने सपनें को, 
इस दो रोटी की लड़ाई में।

©The Urban Rishi

हाँ मैने हत्या की है, एक कवि की, हम सबने की है हत्याएं, किसी लेखक, खिलाड़ी, अभिनेता की, अपने अंदर जाओ और पूछो, खुद से, क्या तुम वही हो जो बनना चाहते थे, या मार डाला तुमने,

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सिर्फ साल ही खत्म हुआ है.. न खत्म हुई.. तुम्हारी नाराजगी, तुम्हारी बेरूखी, और.. न ही खत्म हुआ.. मेरा इन्तजार.. मेरी आस.. ©The Urban Rishi

#भृगुऋषि #theurbanrishi #HappyNewYear  सिर्फ साल ही खत्म हुआ है..
न खत्म हुई..
तुम्हारी नाराजगी,
तुम्हारी बेरूखी,
और..
न ही खत्म हुआ..
मेरा इन्तजार..
मेरी आस..

©The Urban Rishi

सिर्फ साल ही खत्म हुआ है.. न खत्म हुई.. तुम्हारी नाराजगी.. तुम्हारी बेरूखी.. और.. न ही खत्म हुआ.. मेरा इन्तजार.. मेरी आस..

8 Love

यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं। लोचनाभ्याम विहीनस्य, दर्पण:किं करिष्यति।। जिसकी स्वयं की बुद्धि नहीं है, शास्त्र उसका करेंगे क्या या शास्त्र उसे कैसे लाभ पहुँचायेंगे उसी तरह से जिस तरह से चक्षु-विहीन व्यक्ति के लिए दर्पण किसी काम का नहीं होता है। ©The Urban Rishi

#Quotes #lonely  यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं। 
लोचनाभ्याम विहीनस्य, दर्पण:किं करिष्यति।।

जिसकी स्वयं की बुद्धि नहीं है, शास्त्र उसका करेंगे क्या या शास्त्र उसे कैसे लाभ पहुँचायेंगे उसी तरह से जिस तरह से चक्षु-विहीन व्यक्ति के लिए दर्पण किसी काम का नहीं होता है।

©The Urban Rishi

#lonely

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©The Urban Rishi

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