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कविताएं यहां पढ़ें- theurbanrishi.in उतर भवर में ना पछताओ, अपनी नौका आप चलाओ...
theurbanrishi.in
कुछ अधूरे सपनें, कुछ अधूरी बातें, कुछ अनकहे क़िस्से, कुछ अनसुनी आहें, कुछ अधूरी मोहब्बत, कुछ अधूरे रास्तें, कुछ अधूरी मंजिलें, और ये पूरी ज़िंदगी, इक अधूरी दास्तान.... ©The Urban Rishi
The Urban Rishi
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भविष्य हमेशा इनसिक्योरिटी और डर पैदा करता है इसलिए भविष्य के बारे में सोचना छोड़कर वर्तमान के बारे में सोचो और करो.. जीवन जो कुछ भी है अभी है। ©The Urban Rishi
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सिर्फ साल ही खत्म हुआ है.. न खत्म हुई.. तुम्हारी नाराजगी, तुम्हारी बेरूखी, और.. न ही खत्म हुआ.. मेरा इन्तजार.. मेरी आस.. ©The Urban Rishi
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यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं। लोचनाभ्याम विहीनस्य, दर्पण:किं करिष्यति।। जिसकी स्वयं की बुद्धि नहीं है, शास्त्र उसका करेंगे क्या या शास्त्र उसे कैसे लाभ पहुँचायेंगे उसी तरह से जिस तरह से चक्षु-विहीन व्यक्ति के लिए दर्पण किसी काम का नहीं होता है। ©The Urban Rishi
.......….………………............................... ©The Urban Rishi
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