लचक जिंदगी का लचक (टेंशन) है हर दिन यहां जीने में | हिंदी कविता

"लचक जिंदगी का लचक (टेंशन) है हर दिन यहां जीने में जीर्ण को आता मजा सखिने में कुछ लम्हा हमे वी चाहिए बिश्रान्ति में लेकिन नही है फुरसत किसीने में बड़ा लचक है हर दिन यहां जीने में संस्कारो में बहा दी अर्थ की गंगा सभी ने किया समय पे मूलार्थ नंगा कोई नही तरहीज उनके धर्मो का हरकिसी को है अवसर अपने तृष्णा का बड़ा लचक है हर दिन यहां जीने का शीर्ण में लाचार सरीर है जीने को मन को समझाना सरीखे है पड़ने को बहुत गर्ज है उनको अपने प्रिया का फिर वी मजबूर है जिन्दा रहने को बड़ा लचक है हर दिन यहां जीने को सहोदर ने ब्याह किया सभी आत्मजा का और किया अपनी निर्वाह धर्मो का पालन किया अपने धर्म कर्तब्यो का कोई नही तरहीज उनके कर्मो का बड़ा लचक है हर दिन यहां जीने का एक थे राम अपने परिवारों का चल बसे यों हमे छोड़ मझधारो में नही है कोई शिकायत उनके विचारों से लेकिन यूहीं नही छोड़ा करते अपनो को बड़ा लचक है हर दिन यहां जीने को जमीं की लड़ाई है यहां अपनो में नही कोई चाह किसी से रिस्तो में नही कोई तरहीज अपने बचनों का हरकिसी को है परवाह सिर्फ अपनो का बड़ा लचक है हर दिन यहां जीने का कनक ✍️ ©शुभम कश्यप"

 लचक जिंदगी का
लचक (टेंशन) है हर दिन यहां जीने में
जीर्ण को आता मजा सखिने में
कुछ लम्हा हमे वी चाहिए बिश्रान्ति में
लेकिन नही है फुरसत किसीने में
बड़ा लचक है हर दिन यहां जीने में

संस्कारो में बहा दी अर्थ की गंगा
सभी ने किया समय पे मूलार्थ नंगा
कोई नही तरहीज उनके धर्मो का
हरकिसी को है अवसर अपने तृष्णा का
बड़ा लचक है हर दिन यहां जीने का

शीर्ण में लाचार सरीर है जीने को
मन को समझाना सरीखे है पड़ने को
बहुत गर्ज है उनको अपने प्रिया का
फिर वी मजबूर है जिन्दा रहने को
बड़ा लचक है हर दिन यहां जीने को

सहोदर ने ब्याह किया सभी आत्मजा का
और किया अपनी निर्वाह धर्मो का
पालन किया अपने धर्म कर्तब्यो का
कोई नही तरहीज उनके कर्मो का
बड़ा लचक है हर दिन यहां जीने का

एक थे राम अपने परिवारों का
चल बसे यों हमे छोड़ मझधारो में
नही है कोई शिकायत उनके विचारों से
लेकिन यूहीं नही छोड़ा करते अपनो को
बड़ा लचक है हर दिन यहां जीने को

जमीं की लड़ाई है यहां अपनो में
नही कोई चाह किसी से रिस्तो में
नही कोई तरहीज अपने बचनों का
हरकिसी को है परवाह सिर्फ अपनो का
बड़ा लचक है हर दिन यहां जीने का

                               कनक ✍️

©शुभम कश्यप

लचक जिंदगी का लचक (टेंशन) है हर दिन यहां जीने में जीर्ण को आता मजा सखिने में कुछ लम्हा हमे वी चाहिए बिश्रान्ति में लेकिन नही है फुरसत किसीने में बड़ा लचक है हर दिन यहां जीने में संस्कारो में बहा दी अर्थ की गंगा सभी ने किया समय पे मूलार्थ नंगा कोई नही तरहीज उनके धर्मो का हरकिसी को है अवसर अपने तृष्णा का बड़ा लचक है हर दिन यहां जीने का शीर्ण में लाचार सरीर है जीने को मन को समझाना सरीखे है पड़ने को बहुत गर्ज है उनको अपने प्रिया का फिर वी मजबूर है जिन्दा रहने को बड़ा लचक है हर दिन यहां जीने को सहोदर ने ब्याह किया सभी आत्मजा का और किया अपनी निर्वाह धर्मो का पालन किया अपने धर्म कर्तब्यो का कोई नही तरहीज उनके कर्मो का बड़ा लचक है हर दिन यहां जीने का एक थे राम अपने परिवारों का चल बसे यों हमे छोड़ मझधारो में नही है कोई शिकायत उनके विचारों से लेकिन यूहीं नही छोड़ा करते अपनो को बड़ा लचक है हर दिन यहां जीने को जमीं की लड़ाई है यहां अपनो में नही कोई चाह किसी से रिस्तो में नही कोई तरहीज अपने बचनों का हरकिसी को है परवाह सिर्फ अपनो का बड़ा लचक है हर दिन यहां जीने का कनक ✍️ ©शुभम कश्यप

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