मुजरे के शौकीन भी देते है पगड़ी का वास्ता सजाते ह | हिंदी शायरी

"मुजरे के शौकीन भी देते है पगड़ी का वास्ता सजाते हैं रोज़ महफिलें और देखते तमाशा फेंकते हैं अशर्फी के जैसे नोट भी कसके तंज देते हैं गहरी चोट भी अपनी ही खोटी आदतें छुपाते हैं समाज से कुलीन कहलाना चाहते हैं और करवाते हैं मुजरे बबली गुर्जर ©Babli Gurjar"

 मुजरे के शौकीन भी देते है पगड़ी का वास्ता 
सजाते हैं रोज़ महफिलें और देखते तमाशा
 
फेंकते हैं अशर्फी के जैसे नोट भी 
कसके तंज देते हैं गहरी चोट भी 

अपनी ही खोटी आदतें छुपाते हैं समाज से 
कुलीन कहलाना चाहते हैं और करवाते हैं मुजरे
बबली गुर्जर

©Babli Gurjar

मुजरे के शौकीन भी देते है पगड़ी का वास्ता सजाते हैं रोज़ महफिलें और देखते तमाशा फेंकते हैं अशर्फी के जैसे नोट भी कसके तंज देते हैं गहरी चोट भी अपनी ही खोटी आदतें छुपाते हैं समाज से कुलीन कहलाना चाहते हैं और करवाते हैं मुजरे बबली गुर्जर ©Babli Gurjar

कुलीन@Ravi Ranjan Kumar Kausik @R... Ojha @Lalit Saxena @kavita pramar @Aditya kumar prasad @Mili Saha

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