हवा का रुख ना पढ़ पाए, भितरघात ना सह पाए, था | हिंदी कविता

"हवा का रुख ना पढ़ पाए, भितरघात ना सह पाए, था अभिमान बाजुओं पर, दरिया पार न कर पाए, बैठ गया किस करवट ऊँट, बात न क़ब्ल समझ पाए, कश्ती में थे छिद्र बहुत, साहिल तलक न बह पाए, शर्त जीतकर खुश नाविक, व्याकुल घटक न रह पाए, गौरव गाथा विपरीत राग, साधे बिन लक्ष्य स्वत: पाए, रहबर का साथ मिला गुंजन, जयघोष देश का कह पाए, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra"

 हवा का रुख ना पढ़ पाए, 
भितरघात  ना  सह  पाए,

था अभिमान बाजुओं पर, 
दरिया  पार  न  कर  पाए,

बैठ गया किस करवट ऊँट, 
बात  न क़ब्ल  समझ पाए,

कश्ती  में  थे   छिद्र  बहुत, 
साहिल तलक न  बह पाए,

शर्त जीतकर खुश नाविक, 
व्याकुल घटक न  रह पाए,

गौरव गाथा  विपरीत  राग, 
साधे बिन लक्ष्य स्वत: पाए,

रहबर का साथ मिला गुंजन, 
जयघोष देश का  कह पाए,
 --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
       प्रयागराज उ॰प्र॰

©Shashi Bhushan Mishra

हवा का रुख ना पढ़ पाए, भितरघात ना सह पाए, था अभिमान बाजुओं पर, दरिया पार न कर पाए, बैठ गया किस करवट ऊँट, बात न क़ब्ल समझ पाए, कश्ती में थे छिद्र बहुत, साहिल तलक न बह पाए, शर्त जीतकर खुश नाविक, व्याकुल घटक न रह पाए, गौरव गाथा विपरीत राग, साधे बिन लक्ष्य स्वत: पाए, रहबर का साथ मिला गुंजन, जयघोष देश का कह पाए, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra

#जयघोष देश का कह पाए#

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