White (हिदायत) रात कितनी भी गहरी हो इंतजार की ,,तु

"White (हिदायत) रात कितनी भी गहरी हो इंतजार की ,,तुम एक बोतल और खोल लेना ,,मगर ,,इन बोझल आंखों से अब कोई ख्वाब नही देखना ।। # जाम में घोलकर पी जाना ,, पलकों पर उमड़ता दरिया ,, मौज में बहती कश्तियां तो देख लेना मगर ,,गम का कोई सैलाब नही देखना । # उन गजलों -गुलाबों की हालत हुबहू तुम्हारे जैसी ही है ,,तुम खुद आइना तो देख लेना मगर ,,खोलकर वो पुरानी किताब नही देखना । # इस दर्जा पीना के सुद बुध गवा बैठो अपनी , लुफ्त खुलकर जख्मों के ज़ायके का तो लेना मगर ,पीने से पहले ,किस दर्जे की है शराब नही देखना। # खुद को देखना,, कितने मक्कार थे तुम (राणा) , अब इस नशे में रहकर खुद के फरेब पर तो गौर करना मगर ,,उसके बदले में हो मिले अजाब नही देखना । # बढ़ती उम्र से बीते लम्हे मांगकर देखना ,, वो खुश थी क्या तुम्हारे साथ ,, बस देखकर नजरंदाज तो करना मगर ,,बाद उसके हुए जो अपने हालात नही देखना । # बेहिसाब पीना जैसे हर रात आखिरी हो ,,पीने से पहले ये पुख़्ता करना जाम सुर्ख लाल ही मगर ,,बाद पीने के प्यालों का हिसाब नही देखना । # इस दर्जा पीना राणा के सुद बुद्ध गवा बैठो अपनी , लुफ्त जख्मों के ज़ायके का तो लेना मगर ,,पीने से पहले किस दर्जे की है शराब नही देखना । ©#शून्य राणा"

 White (हिदायत)
रात कितनी भी गहरी हो इंतजार की ,,तुम एक बोतल और खोल लेना ,,मगर ,,इन बोझल आंखों से अब कोई ख्वाब नही देखना ।।
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जाम में घोलकर पी जाना ,, पलकों पर उमड़ता दरिया ,, मौज में बहती कश्तियां तो देख लेना मगर ,,गम का कोई सैलाब नही देखना ।
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उन गजलों -गुलाबों की हालत हुबहू तुम्हारे जैसी ही है ,,तुम खुद  आइना तो देख लेना मगर ,,खोलकर वो पुरानी किताब नही देखना ।
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इस दर्जा पीना के सुद बुध गवा बैठो अपनी , लुफ्त खुलकर जख्मों के ज़ायके का तो लेना मगर ,पीने से पहले ,किस दर्जे की है शराब नही देखना।
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खुद को देखना,, कितने मक्कार थे तुम (राणा) , अब इस नशे में रहकर खुद के फरेब पर तो गौर करना मगर ,,उसके बदले में हो मिले अजाब नही देखना ।
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बढ़ती उम्र से बीते लम्हे मांगकर देखना ,, वो खुश थी क्या तुम्हारे साथ ,, बस देखकर  नजरंदाज तो करना मगर ,,बाद उसके हुए जो अपने हालात नही देखना ।
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बेहिसाब पीना जैसे हर रात आखिरी हो ,,पीने से पहले ये पुख़्ता करना जाम सुर्ख लाल ही मगर ,,बाद पीने के  प्यालों का हिसाब नही देखना ।
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इस दर्जा पीना राणा के सुद बुद्ध गवा बैठो अपनी , लुफ्त जख्मों के ज़ायके का तो लेना मगर ,,पीने से पहले किस दर्जे की है शराब नही देखना ।

©#शून्य राणा

White (हिदायत) रात कितनी भी गहरी हो इंतजार की ,,तुम एक बोतल और खोल लेना ,,मगर ,,इन बोझल आंखों से अब कोई ख्वाब नही देखना ।। # जाम में घोलकर पी जाना ,, पलकों पर उमड़ता दरिया ,, मौज में बहती कश्तियां तो देख लेना मगर ,,गम का कोई सैलाब नही देखना । # उन गजलों -गुलाबों की हालत हुबहू तुम्हारे जैसी ही है ,,तुम खुद आइना तो देख लेना मगर ,,खोलकर वो पुरानी किताब नही देखना । # इस दर्जा पीना के सुद बुध गवा बैठो अपनी , लुफ्त खुलकर जख्मों के ज़ायके का तो लेना मगर ,पीने से पहले ,किस दर्जे की है शराब नही देखना। # खुद को देखना,, कितने मक्कार थे तुम (राणा) , अब इस नशे में रहकर खुद के फरेब पर तो गौर करना मगर ,,उसके बदले में हो मिले अजाब नही देखना । # बढ़ती उम्र से बीते लम्हे मांगकर देखना ,, वो खुश थी क्या तुम्हारे साथ ,, बस देखकर नजरंदाज तो करना मगर ,,बाद उसके हुए जो अपने हालात नही देखना । # बेहिसाब पीना जैसे हर रात आखिरी हो ,,पीने से पहले ये पुख़्ता करना जाम सुर्ख लाल ही मगर ,,बाद पीने के प्यालों का हिसाब नही देखना । # इस दर्जा पीना राणा के सुद बुद्ध गवा बैठो अपनी , लुफ्त जख्मों के ज़ायके का तो लेना मगर ,,पीने से पहले किस दर्जे की है शराब नही देखना । ©#शून्य राणा

#किस दर्जे की है शराब नही देखना।
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