अपने इस समाजे घर से आज ये बेटियाँ क्यों डर रही है | हिंदी Shayari

"अपने इस समाजे घर से आज ये बेटियाँ क्यों डर रही है । अपनी दुनिया सजाने को ये आज संघर्ष क्यों कर रही है।। ऐ खुदा ,ऐ इनायते हिंद मेरी हां उल्फत को थाम लो तुम। मेरा हा तुमसे बस ये हैं प्रश्न, नित्य ये प्रियंका क्यों मर रही है।। अपने इस समाजे घर से आज ये बेटियाँ क्यों डर रही है। अपनी आन बचाने को ये आज अपनों से लड़ रही है।। अनुराग ए दिल हां अंदर से ,टूट कर भी ये कह रही है। आज ये दुनिया हां मुसदिली की आखिरी सीमा पे जा खड़ी है।। अपने इस समाजे घर से आज ये बेटियाँ क्यों डर रही है।।"

 अपने इस समाजे घर से आज ये बेटियाँ क्यों डर रही है । 
अपनी दुनिया सजाने को ये आज संघर्ष क्यों कर रही है।। 
ऐ खुदा ,ऐ इनायते हिंद मेरी हां उल्फत को थाम लो तुम। 
मेरा हा तुमसे बस ये हैं प्रश्न, 
                        नित्य ये प्रियंका क्यों मर रही है।। 
अपने इस समाजे घर से आज ये बेटियाँ क्यों डर रही है।
अपनी आन बचाने को ये आज अपनों से लड़ रही है।। 
अनुराग ए दिल हां अंदर से ,टूट कर भी ये कह रही है।
आज ये दुनिया हां मुसदिली की आखिरी सीमा पे जा खड़ी है।। 
अपने इस समाजे घर से आज ये बेटियाँ क्यों डर रही है।।

अपने इस समाजे घर से आज ये बेटियाँ क्यों डर रही है । अपनी दुनिया सजाने को ये आज संघर्ष क्यों कर रही है।। ऐ खुदा ,ऐ इनायते हिंद मेरी हां उल्फत को थाम लो तुम। मेरा हा तुमसे बस ये हैं प्रश्न, नित्य ये प्रियंका क्यों मर रही है।। अपने इस समाजे घर से आज ये बेटियाँ क्यों डर रही है। अपनी आन बचाने को ये आज अपनों से लड़ रही है।। अनुराग ए दिल हां अंदर से ,टूट कर भी ये कह रही है। आज ये दुनिया हां मुसदिली की आखिरी सीमा पे जा खड़ी है।। अपने इस समाजे घर से आज ये बेटियाँ क्यों डर रही है।।

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