जो कुछ भी हो रहा है ये आज अचानक नहीं हुआ पहले भी ह | हिंदी कविता

"जो कुछ भी हो रहा है ये आज अचानक नहीं हुआ पहले भी होता था जो भी हुआ सही हुआ जीवन के बाद मृत्यु है ये अटल सत्य जान लो सब्र से काम लो टूटना होता है मिट्टी के खिलौनों को बिखर के फिर मिट्टी हो जाना है खेलों जब तक है वज़ूद आख़िर साँस के साथ सब खो जाना है टूटे हुए खिलौनों पर शोक ना करो तड़पते दिल को तुम थाम लो सब्र से काम लो यादें भी तब तलक सीने में जान है जब तलक उखड़ती सांसे संग चलेंगी यादें इस जमीं से उस फलक अब भी क्या दौड़ना, जिंदगी थोड़े न है अब तो ठहर जाओ, अब तो आराम लो सब्र से काम लो ✍️ सूरज कुमार "प्रौढ़ कलम""

 जो कुछ भी हो रहा है
ये आज अचानक नहीं हुआ
पहले भी होता था
जो भी हुआ सही हुआ
जीवन के बाद मृत्यु है
ये अटल सत्य जान लो
सब्र से काम लो

टूटना होता है मिट्टी के खिलौनों को
बिखर के फिर मिट्टी हो जाना है
खेलों जब तक है वज़ूद
आख़िर साँस के साथ सब खो जाना है
टूटे हुए खिलौनों पर शोक ना करो
तड़पते दिल को तुम थाम लो
सब्र से काम लो

यादें भी तब तलक
सीने में जान है जब तलक
उखड़ती सांसे संग चलेंगी यादें
इस जमीं से उस फलक
अब भी क्या दौड़ना, जिंदगी थोड़े न है
अब तो ठहर जाओ, अब तो आराम लो
सब्र से काम लो

✍️ सूरज कुमार "प्रौढ़ कलम"

जो कुछ भी हो रहा है ये आज अचानक नहीं हुआ पहले भी होता था जो भी हुआ सही हुआ जीवन के बाद मृत्यु है ये अटल सत्य जान लो सब्र से काम लो टूटना होता है मिट्टी के खिलौनों को बिखर के फिर मिट्टी हो जाना है खेलों जब तक है वज़ूद आख़िर साँस के साथ सब खो जाना है टूटे हुए खिलौनों पर शोक ना करो तड़पते दिल को तुम थाम लो सब्र से काम लो यादें भी तब तलक सीने में जान है जब तलक उखड़ती सांसे संग चलेंगी यादें इस जमीं से उस फलक अब भी क्या दौड़ना, जिंदगी थोड़े न है अब तो ठहर जाओ, अब तो आराम लो सब्र से काम लो ✍️ सूरज कुमार "प्रौढ़ कलम"

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