चाँद इतराता गगन में,
चाँदनी गुलज़ार मन में,
प्रेम की है सुगबुगाहट,
सुरसुरी है तन-बदन में,
छल गया है एक छलिया,
हुई गलती बाँकपन में,
फूल पे भँवरे का पहरा,
और ख़ुश्बू है चमन में,
भूलकर पहचान अपनी,
मस्त दुनिया पैरहन में,
देख तन्हाई का मंज़र,
आ गए हम अंजुमन में,
खुशनसीबी यही 'गुंजन',
क़ैद है दिल गुलबदन में,
-शशि भूषण मिश्र
'गुंजन' चेन्नई
©Shashi Bhushan Mishra
#चाँद इतराता गगन में#